प्राकृतिक चिकित्सा

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में इन तीन बातों की अत्यधिक आवश्यकता होती है – स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन तथा सम्मानित जीवन। सुख का आधार स्वास्थ्य है तथा सुखी जीवन ही सम्मान के योग्य है।

आयुर्वेद का अनुपम उपहार

अच्युताय हरिओम उत्पाद

स्वास्थ्य का सच्चा मार्ग

स्वास्थ्य का मूल आधार संयम है।

सर्दियों के लिए विशेष

अच्युताय हरिओम उत्पाद

Achyutaya HariOm Panchamrit Ras :अच्युताय हरिओम पंचामृत रस : स्वास्थय व ऊर्जा प्रदायक, पाचक, व रोगनाशक अदभुत योग

Achyutaya HariOm Santkripa Surma : अच्युताय हरिओम संतकृपा सुरमा - आँखों को सुरक्षित, निरोगी, तेजस्वी बनाने की क्षमता रखने वाला अदभुत योग

Wednesday 30 January 2013

Helpful Tips(उपयोगी युक्तियाँ)-1

Helpful Tips(उपयोगी युक्तियाँ)-1


Saturday 26 January 2013

ब्रम्हचर्य सहायक प्राणायाम


ब्रम्हचर्य सहायक प्राणायाम


सीधा लेट जाये पीठ के बल से.. कान में रुई के छोटे से बॉल बना के कान बंद कर देना | अब नजर नासिका पर रख देना और रुक-रुक के श्वास लेता रहें | आँखों की पुतलियाँ ऊपर चढ़ा देना ...शांभवी मुद्रा शिवजी की जैसी है| वो एकाग्रता में बड़ी मदद करती है | जिसको अधोमुलित नेत्र कहते है | आँखों की पुतली ऊपर चढ़ा देना ... दृष्टि भ्रूमध्य में टिका लेना ... जहाँ तीलक किया जाता है वहाँ | आँखे बंद होने लगेगी ... कुछ लोग बंद करते है तो मनोराज होता है, दबा के बंद करता है सिर दुखता है | ये स्वाभाविक आँखे बंद होने लगेगी | बंद होने लगे तो होने दो | शरीर को शव वत ढीला छोड़ दिया .... चित्त शांत हो रहा है ॐ शांति .... इंद्रिया संयमी हो रही है .... फिर क्या करें.. फिर कुंभक करें .. श्वास रोक दे ... जितने देर रोक सकते है ... फिर एकाक न छोड़े, रिदम से छोड़े ...बाह्य कुंभक ...अंतर कुंभक.. दोनों कुंभक हो सकते है | इससे नाडी शुद्ध तो होगी और नीचे के केन्द्रों में जो विकार पैदा होते है वो नीचे के केन्द्रों की यात्रा ऊपर आ जायेगी | अगर ज्यादा अभ्यास करेंगा आधा घंटे से भी ज्यादा और तीन time करें तो जो अनहदनाद अंदर चल रहा है वो शुरू हो जाएगा | गुरुवाणी में आया – अनहद सुनो वडभागियाँ सकल मनोरथ पुरे | तो कामविकार से रक्षा होती है और अनहदनाद का रस भी आता है, उपसाना में भी बड़ा सहायक है



पौष्टिक फल फालसा



पौष्टिक फल फालसा 

फालसा गरमी से राहत दिलाता ही है और शरीर के लिए भी बहुत पौष्टिक भी है |

गर्मियों के सबसे लोकप्रिय फलों में फालसा प्रमुखत: से शामिल है | अपने लाजबाव स्वाद के कारण फालसा आहार सबके पसंदी का फल है | पके हुये फालसे को नमक, कालीमिर्च और चाट मसाला मिलाकर खाया ही नहीं जाता बल्कि इसका  शरबत भी काफी लोकप्रिय है | पोषक तत्वों की खान, छोटे से फल फालसा को पोषक तत्वों की खान और एंटी ओक्सिडेंट कहना गलत न होगा | देखा जाय तो फालसा फल का ६९% भाग ही खाने लायक होता है | बाकी हिस्से में गुठली होती है | इसमें मौजूद मँग्नेसियम, पोटेसियम, सोडियम, फोस्फरस, केल्शियम,
प्रोटीन, कार्बोहैड्रेट, लोहा, विटामिन ए और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व इसे हमारे लिए सेहत का खजाना बना देते है |

फालसा में गरमी के मौसम संबधित समस्याओं को दूर करने की अदभुत क्षमता होती है | फालसे के रस को शांत, ताजा और आसानी से पचने और गरमी में प्यास  से राहत पहुंचाने वाला आदर्श ठंडा टॉनिक भी कहा जाता है | इसका उपयोग  शारीरिक विकारों और बीमारीयों के ईलाज के लिए किया जाता रहा है | ये पित्ताशय और जिगर की समस्याओं को दूर करता है | फालसे में थोडा कसैला पन भी है | जो शरीर से अतिरिक्त आम्लता को कम करके पाचन सबंधी समस्याओं दूर करता है | ये अपचक की समस्या से मुक्ति दिलाता है और भूख भी बढाता है | विटामिन सी और खनिज तत्वों से भरपूर फालसे से सेवन से रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है | इससे ह्रदय रोग का खतरा कम हो जाता है | अस्थमा और ब्रोमकैस्टेक के रोगीयों को फालसा खाने से साँस की तकलिफ में राहत मिलती है | हाल में ही हुये वैज्ञानिक शोधों से ये बात सामने आयी है कि फालसा में रेडिओंधर्मी क्षमता भी होती है इस कारण ये कैंसर से लढने भी शरीर को सहायता करता है | anemia  से बचाता है |

इससे मस्तिष्क की गरमी और खुश्की भी दूर होती है | खनिज लवणों की अधिकता होने कारण इसे खाने से शरीर में Hemoglobin भी बढ़ता है और anenia से बचाव होता है | इसके सेवन से मूत्रसबंधी समस्याओं से राहत मिलती है | लू से भी करता है रक्षा | फालसे का रस गर्मीयों में चलने वाली लू और उससे होने वाले बुखार से बचाने में ख़ास भूमिका निभाता है | अगर आपका स्वभाव चिडचिडा है तो फालसे को किसी भी रूप में खायें लाभ होगा | उलटी और गबराहट  दूर करता है | धुप में रहने के कारण शरीर के खुले अंगों पर होने वाली लालिमा, जलन, सुजन और कालेपन को दूर करने में भी ये मदद करता है | विटामिन सी से भरपूर फालसे का खट्टा-मीठा रस खाँसी-जुकाम को रोकने और गले में होने वाली समस्याओं से निजात पाने के लिए काफी प्रभावशाली होता है |

और भी रोचक जानकारी के लिए यह पोस्ट पढ़ें  ..फालसा








Friday 25 January 2013

स्मृतिवर्धक प्राणायम




स्मृतिवर्धक प्राणायम 


बायें पैर की एडी गुदा द्वार पे रख दें | जैसे सिद्ध आसन में बैठते है | दायने पाँव की एडी बायें पैर की जांघो पर लगा दें और  ठोडी छाती के तरफ कर दें | इसको जालंदर बंद बोलते है | इससे स्मृति गजब की बढती है |आँखे बंद कर दे ... गहरा श्वास लें .... उसको रेचक बोलते है | फिर रोके ... उसको कुंभक बोलते है और फिर पहले तो श्वास लें ...छोड़े ... छोड़ना रेचक है... लेना पूरक है ... रोकना कुंभक है | तो रेचक, कुंभक, पूरक, कुंभक, रेचक अभ्यास करें और ये अभ्यास १५ – २० – २५ - ३० मिनट... एक घंटे तक बढ़ा सकते है आप | गजब की स्मृति बढ़ेगी और तन के कई रोग भी मिटेंगे और मानसिक तनाव भाग जायेगें |


Thursday 24 January 2013

स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार : गाय का घी


स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार
गाय का घी



गाय का घी गुणों में मधुर, शीतल, स्निग्ध, गुरु (पचने में भारी) एवं हृदय के लिए सदा पथ्य, श्रेयस्कर एवं प्रियकर होता है। यह आँखों का तेज, शरीर की कांति एवं बुद्धि को बढ़ाने वाला है। यह आहार में रुचि उत्पन्न करने वाला तथा जठराग्नि का प्रदीप्त करने वाला, वीर्य, ओज, आयु, बल एवं यौवन को बढ़ाने वाला है। घी खाने से सात्त्विकता, सौम्यता, सुन्दरता एवं मेधाशक्ति बढ़ती है।
गाय का घी स्निग्ध, गुरु, शीत गुणों से युक्त होने के कारण वात को शांत करता है, शीतवीर्य होने से पित्त को नष्ट करता है और अपने समान गुणवाले कफदोष को कफघ्न औषधियों के संस्कारों द्वारा नष्ट करता है। गाय का घी दाह को शांत, शरीर का कोमल, स्वर को मधुर करता है तथा वर्ण एवं कांति को बढ़ाता है।
शरद ऋतु में स्वस्थ मनुष्य को घी का सेवन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में स्वाभाविक रूप से पित्त का प्रकोप होता है। 'पित्तघ्नं घृतम्' के अनुसार गाय का घी पित्त और पित्तजन्य विकारों को दूर करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। संपूर्ण भारत में 16 सितम्बर से 14 नवम्बर तक शरद ऋतु मानी जा सकती है।
पित्तजन्य विकारों के लिए शरद ऋतु में घी का सेवन सुबह या दोपहर में करना चाहिए। घी पीने के बाद गरम जल पीना चाहिए। गरम जल के कारण घी सारे स्त्रोतों में फैलकर अपना कार्य करने में समर्थ होता है।
अनेक रोगों में गाय का घी अन्य औषधद्रव्यों के साथ मिलाकर दिया जाता है। घी के द्वारा औषध का गुण शरीर में शीघ्र ही प्रसारित होता है एवं औषध के गुणों का विशेष रूप से विकास होता है। अनेक रोगों में औषधद्रव्यों से सिद्ध घी का उपयोग भी किया जाता है जैसे, त्रिफला घृत, अश्वगंधा घृत आदि।
गाय का घी अन्य औषधद्रव्यों से संस्कारित कराने की विधि इस प्रकार है।
औषधद्रव्य का स्वरस (कूटकर निकाला हुआ रस) अथवा कल्क (चूर्ण) 50 ग्राम लें। उसमें 200 ग्राम गाय का घी और 800 ग्राम पानी डालकर धीमी आँच पर उबलने दें। जब सारा पानी जल जाय और घी कल्क से अलग एवं स्वच्छ दिखने लगे तब घी को उतारकर छान लें और उसे एक बोतल में भरकर रख लें।
औषधीय दृष्टि से घी जितना पुराना, उतना ही ज्यादा गुणप्रद होता है। पुराना घी पागलपन, मिर्गी जैसे मानसिक रोगों एवं मोतिया बिंद जैसे रोगों में चमत्कारिक परिणाम देता है। घी बल को बढ़ाता है एवं शरीर तथा इन्द्रियों अर्थात् आँख, नाक, कान, जीभ तथा त्वचा को पुनः नवीन करता है।
आयुर्वेद तो कहता है कि जो लोग आँखों का तेज बढ़ाना चाहते हो, सदा निरोगी तथा बलवान रहना चाहते हो, लम्बा मनुष्य चाहते हों, ओज, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, मेधाशक्ति, जठराग्नि का बल, बुद्धिबल, शरीर की कांति एवं नाक-कान आदि इन्द्रियों की शक्ति बनाये रखना चाहते हो उन्हें घी का सेवन अवश्य करना चाहिए। जिस प्रकार सूखी लकड़ी तुरंत टूट जाती है वैसे ही घी न खाने वालों का शरीर भी जल्दी टूट जाता है।
विशेषः गाय का घी हृद्य है अर्थात् हृदय के लिए सर्वथा हितकर है। नये वैज्ञानिक शोध के अनुसार गाय का घी पोजिटिव कोलेस्ट्रोल उत्पन्न करता है जो हृदय एवं शरीर के लिए उपयोगी है। इसलिए हृदयरोग के मरीज भी घबराये बिना गाय का घी सकते हैं।
सावधानीः अत्यंत शीत काल में या कफप्रधान प्रकृति के मनुष्य द्वारा घी का सेवन रात्रि में किया गया तो यह अफरा, अरुचि, उदरशूल और पांडुरोग को उत्पन्न करता है। अतः ऐसी स्थिति में दिन में ही घी का सेवन करना चाहिए। जिन लोगों के शरीर में कफ और मेद बढ़ा हो, जो नित्य मंदाग्नि से पीड़ित हों, अन्न में अरुचि हो, सर्दी, उदररोग, आमदोष से पीड़ित हों, ऐसे व्यक्तियों को उन दिनों में घी का सेवन नहीं करना चाहिए।
औषधि-प्रयोगः
आधासीसीः रोज सुबह-शाम नाक में गाय के घी की 2-3 बूँदें डालने से सात दिन में आधासीसी मिट जाती है।
चौथिया ज्वर, उन्माद, अपस्मार (मिर्गी)- इन रोगों में पंचगव्य घी पिलाने से इन रोगों का शमन होता है।
त्वचा जलने परः जले हुए पर धोया हुआ घी (घी को पानी में मिला कर खूब मथें। जब एकरस हो जाय फिर पानी निकालकर अलग कर दें, ऐसा घी) लगाने से किसी भी प्रकार की विकृति के बिना ही घाव मिट जाता है।
शतधौत घृतः शतधौत घृत माने 100 बार धोया हुआ घी। इस घी से मालिश करने से हाथ पैर की जलन और सिर की गर्मी चमत्कारिक रूप से शांत होती है।
बनाने की विधिः एक काँसे के बड़े बर्तन में लगभग 250 ग्राम घी लें। उसमें लगभग 2 लीटर शुद्ध ठंडा पानी डालें और हाथ से इस तरह हिलायें मानों, घी और पानी का मिश्रण कर रहे हों।
पानी जब घी से अलग हो जाय तब सावधानीपूर्वक पानी को निकाल दें। इस तरह से सौ बार ताजा पानी लेकर घी को धो डालें और फिर पानी को निकाल दें। अब जो घी बचता है वह अत्यधिक शीतलता प्रदान करने वाला होता है। हाथ, पैर और सिर पर उसकी मालिश करने से गर्मी शांत होती है। कई वैद्य घी को 120 बार भी धोते हैं।
सावधानीः यह घी एक प्रकार का धीमा जहर है इसलिए भूल कर भी इसका प्रयोग खाने में न करें।