Tuesday 22 January 2013
खेखसा (कंकोड़ा)
खेखसे
स्वाद में
कड़वे कसैले,
कफ एवं
पित्तनाशक,
रूचिकर्ता,
शीतल,
वायुदोषवर्धक,
रूक्ष, मूत्रवर्धक,
पचने में हलके
जठराग्निवर्धक
एवं शूल,
खाँसी, श्वास,
बुखार, कोढ़,
प्रमेह, अरुचि
पथरी तथा
हृदयरोगनाशक
है।
खेखसे की
सब्जी बुखार,
खाँसी, श्वास,
उदररोग, कोढ़,
त्वचा रोग,
सूजन एवं मधुमेह
के रोगियों के
लिए ज्यादा
हितकारी है।
श्लीपद
(हाथीपैर) रोग
में भी खेखसा
का सेवन एवं
उसके पत्तों
का लेप
लाभप्रद है।
जो बच्चे दूध
पीकर तुरन्त
उलटी कर देते
हैं, उनकी माताओं
के लिए भी
खेखसे की
सब्जी का सेवन
लाभप्रद है।
सावधानीः
खेखसे
की सब्जी वायु
प्रकृति की
होती है। अतः वायु
के रोगी इसका
सेवन न करें।
इस सब्जी को थोड़ी
मात्रा में ही
खाना हितावह
है।
औषधि-प्रयोगः
बुखार
एवं क्षयः खेखसे
(कंकोड़े) के
पत्तों के
काढ़े में शहद
डालकर पीने से
लाभ होता है।
बवासीरः
खेखसे
के कंद का 5
ग्राम चूर्ण
एवं 5 ग्राम
मिश्री के
चूर्ण को
मिलाकर
सुबह-शाम लेने
से खूनी बवासीर
(मस्से) में
लाभ होता है।
अत्यधिक
पसीना आनाः खेखसे
के कंद का
पाउडर बनाकर,
रोज स्नान के
वक्त वह पाउडर
शरीर पर मसलकर
नहाने से शरीर
से दुर्गन्धयुक्त
पसीना आना बंद
होता है एवं
त्वचा मुलायम
बनती है।
खाँसीः खेखसे
के कंद का 3
ग्राम चूर्ण
सुबह-शाम पानी के
साथ लेने से
लाभ होता है।
खेखसे की
जड़ की दो से
तीन रत्ती (250 से
500 मि.ग्रा.) भस्म
को शहद एवं
अदरक के रस के
साथ देने से
भयंकर खाँसी
एवं श्वास में
राहत मिलती
है।
पथरीः खेखसे
की जड़ का 10
ग्राम चूर्ण
दूध अथवा पानी
के साथ रोज
लेने से किडनी
एवं मूत्राशय
में स्थित
पथरी में लाभ
होता है।
शिरोवेदनाः
खेखसे
की जड़ को
काली मिर्च,
रक्तचंदन एवं
नारियल के साथ
पीसकर ललाट पर
उसका लेप करने
से पित्त के
कारण उत्पन्न
शिरोवेदना
में लाभ होता
है।
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