Friday, 18 January 2013
गजकरणी
गजकरणी
विधिः करीब दो लिटर
पानी गुनगुना सा गरम करें। उसमें करीब 20 ग्राम
शुद्ध नमक घोल दें। सैन्धव मिल जाये तो अच्छा है। अब
पंजों के बल बैठकर वह पानी गिलास भर-भर के पीते जायें। खूब पियें। अधिकाअधिक पियें। पेट जब बिल्कुल भर जाये, गले तक आ जाये, पानी बाहर
निकालने की कोशिश करें तब दाहिने हाथ की दो बड़ी अंगुलियाँ मुँह
में डाल कर उल्टी करें, पिया
हुआ सब पानी बाहर निकाल दें। पेट बिल्कुल हल्का
हो जाये तब पाँच मिनट तक आराम करें।
गजकरणी करने के एकाध घण्टे के बाद केवल पतली खिचड़ी ही भोजन में लें। भोजन के बाद
तीन घण्टे तक पानी न पियें, सोयें नहीं, ठण्डे पानी से स्नान करें। तीन घण्टे के बाद प्रारम्भ
में थोड़ा गरम पानी पियें।
लाभः गजकरणी से
एसिडीटी के रोगी को अदभुत लाभ होता है। ऐसे रोगी को चार-पाँच दिन में एक
बार गजकरणी चाहिए। तत्पश्चात महीने
में एक बार, दो महीने में एक बार,
छः महीने में एक बार भी गजकरणी कर सकते हैं।
प्रातःकाल खाली पेट तुलसी के पाँच-सात पत्ते चबाकर ऊपर से
थोड़ा जल पियें। एसीडीटी के रोगी को इससे बहुत लाभ होगा।
वर्षों पुराने कब्ज के रोगियों को सप्ताह
में एक बार गजकरणी की क्रिया अवश्य करनी चाहिए। उनका आमाशय ग्रन्थिसंस्थान कमजोर
हो जाने से भोजन हजम होने में गड़बड़ रहती है।
गजकरणी करने से इसमें लाभ होता है। फोड़े, फुन्सी, सिर में गर्मी, सर्दी, बुखार, खाँसी, दमा, टी.बी., वात-पित्त-कफ के दोष, जिह्वा के रोग, गले के रोग, छाती के रोग, छाती का दर्द एवं मंदाग्नि में गजकरणी
क्रिया लाभकारक है।
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