अरंडी(Castor)
किसी भी
स्थान पर और
किसी भी ऋतु
में उगने वाला
और कम पानी से
पलने वाला
अरंडी का
वृक्ष गाँव
में तो खेतों
का रक्षक और
घर का पड़ोसी
बनकर रहने
वाला होता है।
वातनाशक,
जकड़न दूर
करने वाला और
शरीर को गतिशील
बनाने वाला
होने के कारण
इसे अरंडी नाम
दिया गया है।
खासतौर पर
अरंडी की जड़
और पत्ते दवाई
में प्रयुक्त
होते हैं।
इसके बीजों
में से जो तेल
निकलता है उसे
अरंडी का तेल
कहते हैं।
गुण-दोषः
गुण
में अरंडी
वायु तथा कफ
का नाश करने
वाली, रस में
तीखी, कसैली,
मधुर,
उष्णवीर्य और
पचने के बाद
कटु होती है।
यह गरम, हलकी,
चिकनी एवं
जठराग्नि,
स्मृति, मेधा,
स्थिरता,
कांति, बल-वीर्य
और आयुष्य को
बढ़ाने वाली
होती है।
यह उत्तम
रसायन है और
हृदय के लिए
हितकर है। अरंडी
के तेल का
विपाक पचने के
बाद मधुर होता
है। यह तेल
पचने में भारी
और कफ करने
वाला होता है।
यह तेल
आमवात, वायु
के तमाम 80 प्रकार
के रोग, शूल,
सूजन,
वायुगोला,
नेत्ररोग, कृमिरोग,
मूत्रावरोध,
अंडवृद्धि,
अफरा, पीलिया,
पैरों का वात
(सायटिका),
पांडुरोग,
कटिशूल, शिरःशूल,
बस्तिशूल
(मूत्राशयशूल),
हृदयरोग आदि
रोगों को
मिटाता है।
अरंडी के
बीजों का
प्रयोग करते
समय बीज के
बीच का जीभ
जैसा भाग
निकाल देना
चाहिए
क्योंकि यह
जहरीला होता है।
शरीर के
अन्य अवयवों
की अपेक्षा
आँतों और जोड़ों
पर अरंडी का
सबसे अधिक असर
होता है।
औषधि-प्रयोगः
कटिशूल
(कमर का दर्द)- कमर पर
अरंडी का तेल
लगाकर, अरंडी
के पत्ते फैलाकर
खाट-सेंक
(चारपाई पर
सेंक) करना
चाहिए। अरंडी
के बीजों का
जीभ निकाला
हुआ भाग (गर्भ), 10
ग्राम दूध में
खीर बनाकर
सुबह-शाम लेना
चाहिए।
शिरःशूलः
वायु
से हुए सिर के
दर्द में
अरंडी के कोमल
पत्तों पर
उबालकर
बाँधना चाहिए
तथा सिर पर
अरंडी के तेल
की मालिश करनी
चाहिए और सोंठ
के काढ़े में 5
से 10 ग्राम
अरंड़ी का तेल
डालकर पीना
चाहिए।
दाँत का
दर्दः अरंडी के
तेल में कपूर
में मिलाकर
कुल्ला करना
चाहिए और
दाँतों पर
मलना चाहिए।
योनिशूलः
प्रसूति
के बाद होने
वाले योनिशूल
को मिटाने के
लिये योनि में
अरंडी के तेल
का फाहा रखें।
उदरशूलः
अरंडी
के पके हुए
पत्तों को गरम
करके पेट पर
बाँधने से और
हींग तथा काला
नमक मिला हुआ अरंडी
का तेल पीने
से तुरंत ही
राहत मिलेगी।
सायटिका
(पैरों का वात)- एक कप
गोमूत्र के
साथ एक चम्मच
अरंडी का तेल
रोज सुबह शाम
लेने और
अरंड़ी के
बीजों की खीर
बनाकर पीने से
कब्ज दूर होती
है।
हाथ-पैर
फटने परः सर्दियों
में हाथ, पैर,
होंठ इत्यादि
फट जाते हों
तो अरंडी का
तेल गरम करके
उन पर लगायें
और इसका जुलाब
लेते रहें।
संधिवातः
अरंडी
के तेल में
सोंठ मिलाकर
गरम करके
जोड़ों पर
(सूजन न हो तो)
मालिश करनी
चाहिए। सोंठ
तथा सौंफ के
काढ़े में
अरंडी का तेल
डालकर पीना चाहिए
और अरंडी के
पत्तों का
सेंक करना
चाहिए।
आमवात में
यही प्रयोग
करना चाहिए।
पक्षाघात
और मुँह का
लकवाः सोंठ डाले
हुए गरम पानी
में 1 चम्मच
अरंडी का तेल
डालकर पीना
चाहिए एवं तेल
से मालिश और
सेंक करनी
चाहिए।
कृमिरोगः
वायविडंग
के काढ़े में
रोज सुबह
अरंडी का तेल डालकर
लें।
अनिद्राः
अरंडी
के कोमल पत्ते
दूध में पीसकर
ललाट और कनपटी
पर गरम-गरम
बाँधने
चाहिए। पाँव
के तलवों और
सिर पर अरंडी
के तेल की
मालिश करनी
चाहिए।
गाँठः अरंडी
के बीज और
हरड़े समान
मात्रा में
लेकर पीस लें।
इसे नयी गाँठ
पर बाँधने से
वह बैठ जायेगी
और अगर लम्बे
समय की पुरानी
गाँठ होगी तो
पक जायेगी।
आँतरिक
चोटः अरंडी
के पत्तों के
काढ़े में
हल्दी डालकर
दर्दवाले
स्थान पर
गरम-गरम डालें
और उसके पत्ते
उबालकर हल्दी
डालकर
चोटवाले
स्थान पर
बाँधे।
आँखें
आनाः अरंडी
के कोमल पत्ते
दूध में
पीसकर, हल्दी
मिलाकर, गरम
करके पट्टी
बाँधें।
स्तनशोथः
स्तनपाक,स्तनशोथ
और स्तनशूल
में अरंडी के
पत्ते पीसकर
लेप करें।
अंडवृद्धिः
नयी
हुई
अंडवृद्धि
में 1-2 चम्मच
अरंडी का तेल,
पाँच गुने
गोमूत्र में
डालकर पियें
और अंडवृद्धि
पर अरंडी के
तेल की मालिश
करके हलका
सेंक करना
चाहिए अथवा
अरंडी के कोमल
पत्ते पीसकर
गरम-गरम लगाने
चाहिए और एक
माह तक एक चम्मच
अरंडी का तेल
देना चाहिए।
आमातिसारः
सोंठ
के काढ़े में
अथवा गरम पानी
में अरंडी का
तेल देना
चाहिए अथवा
अरंडी के तेल
की पिचकारी
देनी चाहिए।
यह इस रोग का
उत्तम इलाज
है।
गुदभ्रंशः
बालक
की गुदा बाहर
निकलती हो तो
अरंडी के तेल
में डुबोई हुई
बत्ती से उसे
दबा दें एवं
ऊपर से रूई
रखकर लंगोट
पहना दें।
आँत्रपुच्छ
शोथ
(अपेण्डिसाइटिस)-
प्रारंभिक
अवस्था में
रोज सुबह सोंठ
के काढ़े में
अरंडी का तेल
दें।
हाथीपाँव
(श्लीपद रोग)- 1 चम्मच
अरंडी के तेल
में 5 गुना
गोमूत्र
मिलाकर 1 माह
तक लें।
रतौंधीः
अरंडी
का 1-1 पत्ता
खायें और उसका
1-1 चम्मच रस
पियें।
वातकंटकः
पैर
की एड़ी में
शूल होता है
तो उसे दूर
करने के लिए
सोंठ के
काढ़ें में या
गरम पानी में
अरंडी का तेल
डालकर पियें
तथा अरंडी के
पत्तों को गरम
करके पट्टी
बाँधें।
तिलः शरीर
पर जन्म से ही
तिल हों तो
उन्हें से दूर
करने के लिए
अरंडी के
पत्तों की
डंडी पर थोड़ा
कली चूना
लगाकर उसे तिल
पर घिसने से
खून निकलकर
तिल गिर जाते
हैं।
ज्वरदाहः
ज्वर
में दाह होता
तो अरंडी के
शीतल कोमल
पत्ते बिस्तर
पर बिछायें और
शरीर पर रखें।
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