Thursday, 3 January 2013
मयूरासन(Mayurasana)
मयूरासन(Mayurasana)
इस आसन में मयूर अर्थात
मोर की आकृति बनती है, इससे
इसे मयूरासन कहा जाता
है।
ध्यान मणिपुर चक्र में।
श्वास बाह्य कुम्भक।
विधिः जमीन पर घुटने टिकाकर
बैठ जायें। दोनों हाथ की हथेलियों को जमीन पर
इस प्रकार रखें कि सब
अंगुलियाँ पैर की दिशा में हों
और परस्पर लगी रहें।
दोनों कुहनियों को मोड़कर
पेट के कोमल भाग पर, नाभि के इर्दगिर्द रखें। अब आगे झुककर
दोनों पैर को पीछे की लम्बे
करें। श्वास बाहर निकाल
कर दोनों पैर को जमीन से
ऊपर उठायें और सिर का भाग
नीचे झुकायें। इस प्रकार
पूरा शरीर ज़मीन के बराबर समानान्तर रहे ऐसी स्थिति बनायें।
संपूर्ण शरीर का वजन केवल दो हथेलियों पर ही
रहेगा। जितना समय रह सकें
उतना समय इस स्थिति में रहकर
फिर मूल स्थिति में आ जायें।
इस प्रकार दो-तीन बार
करें।
लाभः मयूरासन करने से ब्रह्मचर्य-पालन में सहायता मिलती
है। पाचन तंत्र के अंगों
की रक्त का प्रवाह अधिक
बढ़ने से वे अंग बलवान और
कार्यशील बनते हैं। पेट के भीतर
के भागों में दबाव
पड़ने से उनकी शक्ति बढ़ती
है। उदर के अंगों की शिथिलता
और मन्दाग्नि दूर करने
में मयूरासन बहुत उपयोगी
है।
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