टॉन्सिल्स
की
शल्यक्रिया
कभी नहीं
यह रोग
बालक, युवा,
प्रौढ़ – सभी
को होता है
किंतु बालकों
में विशेष रूप
से पाया जाता
है। जिन बालकों
की कफ-प्रकृति
होती है,
उनमें यह रोग
देखने में आता
है। गला कफ का
स्थान होता
है। बच्चों को
मीठे पदार्थ
और फल ज्यादा
खिलाने से, बच्चों
के अधिक सोने
से(विशेषकर
दिन में) उनके
गले में कफ
एकत्रित होकर
गलतुण्डिका
शोथ(टॉन्सिल्स
की सूजन) रोग
हो जाता है।
इससे गले में
खाँसी, खुजली
एवं दर्द के
साथ-साथ सर्दी
एवं ज्वर रहता
है, जिससे
बालकों को
खाने-पीने में
व नींद में
तकलीफ होती
है।
बार-बार
गलतुण्डिका
शोथ होने से
शल्यचिकित्सक(सर्जन)
तुरंत
शल्यक्रिया
करने की सलाह
देते हैं। अगर
यह औषधि से
शल्यक्रिया
से गलतुण्डिका
शोथ दूर होता
है, लेकिन
उसके कारण दूर
नहीं होते। उसके
कारण के दूर
नहीं होने से
छोटी-मोटी
तकलीफें
मिटती नहीं,
बल्कि बढ़ती
रहती हैं।
40 वर्ष पहले
एक विख्यात
डॉक्टर ने
रीडर्स डायजेस्ट
में एक लेख
लिखा था
जिसमें
गलतुण्डिका शोथ
की
शल्यक्रिया
करवाने को मना
किया था।
बालकों ने
गलतुण्डिका
शोथ की
शल्यक्रिया
करवाना – यह
माँ-बाप के
लिए महापाप है
क्योंकि ऐसा
करने से
बालकों की
जीवनशक्ति का
ह्रास होता
है।
निसर्गोपचारक
श्री
धर्मचन्द्र
सरावगी ने लिखा
हैः 'मैंने
टॉन्सिल्स के
सैंकड़ों
रोगियों को बिना
शल्यक्रिया
के ठीक होते
देखा है।'
कुछ वर्ष
पहले
इंग्लैण्ड और
आस्ट्रेलिया
के पुरुषों ने
अनुभव किया कि
टॉन्सिल्स की
शल्यक्रिया
से पुरुषत्व
में कमी आ
जाती है और
स्त्रीत्व के
कुछ लक्षण
उभरने लगते
हैं।
इटालियन
कान्सोलेन्ट,
मुंबई से
प्रकाशित इटालियन
कल्चर नामक
पत्रिका के
अंक नं. 1,2,3 (सन् 1955)
में भी लिखा
थाः 'बचपन
में
टॉन्सिल्स की
शल्यक्रिया
करानेवालों
के पुरुषत्व
में कमी आ
जाती है। बाद
में डॉ.
नोसेन्ट और
गाइडो
कीलोरोली ने 1973
में एक कमेटी
की स्थापना कर
इस पर गहन
शोधकार्य
किया। 10 विद्वानों
ने ग्रेट
ब्रिटेन एवं
संयुक्त राज्य
अमेरिका के
लाखों
पुरुषों पर
परीक्षण करके
उपर्युक्त
परिणाम पाया
तथा इस खतरे
को लोगों के
सामने रखा।
शोध का
परिणाम जब
लोगों को
जानने को मिला
तो उन्हें
आश्चर्य हुआ !
टॉन्सिल्स की
शल्यक्रिया
से सदा थकान
महसूस होती है
तथा पुरुषत्व
में कमी आने
के कारण जातीय
सुख में भी
कमी हो जाती
है और बार-बार
बीमारी होती
रहती है।
जिन-जिन
जवानों के
टॉन्सिल्स की
शल्यक्रिया
हुई थी, वे
बंदूक चलाने
में कमजोर थे,
ऐसा युद्ध के
समय जानने में
आया।
जिन
बालकों के
टॉन्सिल्स
बढ़े हों ऐसे
बालकों को
बर्फ का गोला,
कुल्फी,
आइसक्रीम,
बर्फ का पानी,
फ्रिज का
पानी, चीनी,
गुड़, दही,
केला, टमाटर,
उड़द, ठंडा
पानी, खट्टे-मीठे
पदार्थ, फल,
मिठाई,
पिपरमिंट,
बिस्कुट,
चॉकलेट ये सब
चीजें खाने को
न दें। जो
आहार ठंडा,
चिकना, भारी,
मीठा, खट्टा
और बासी हो, वह
उन्हें न दें।
दूध भी
थोड़ा सा और
वह भी डालकर
दें। पानी उबला
हुआ पिलायें।
उपचार
टान्सिल्स
के उपचार के
लिए हल्दी
सर्वश्रेष्ठ
औषधि है। इसका
ताजा चूर्ण
टॉन्सिल्स पर
दबायें, गरम
पानी से
कुल्ले
करवायें और
गले के बाहरी
भाग पर इसका
लेप करें तथा
इसका आधा-आधा
ग्राम चूर्ण
शहद में
मिलाकर
बार-बार चटाते
रहें।
दालचीनी
के आधे ग्राम
से 2 ग्राम
महीन पाऊडर को
20 से 30 ग्राम शहद
में मिलाकर
चटायें।
टॉन्सिल्स
के रोगी को
अगर कब्ज हो
तो उसे हरड़
दे। मुलहठी
चबाने को दें।
8 से 20 गोली
खदिरादिवटी
या यष्टिमधु
धनवटी या
लवंगादिवटी
चबाने को दें।
कांचनार
गूगल का 1 से 2
ग्राम चूर्ण
शहद के साथ चटायें।
कफकेतु रस
या त्रिभुवन
कीर्तिरस या
लक्ष्मीविलास
रस(नारदीय) 1 से 2
गोली देवें।
आधे से 2
चम्मच अदरक का
रस शहद में
मिलाकर देवें।
त्रिफला
या रीठा या
नमक या फिटकरी
के पानी से बार-बार
कुल्ले
करवायें।
सावधानी
गले में
मफलर या पट्टी
लपेटकर रखनी
चाहिए।
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