Monday, 18 February 2013
हमारे पूजनीय वृक्ष
हमारे पूजनीय वृक्ष
आँवला खाने से आयु बढ़ती है। इसका रस पीने से
धर्म का संचय होता है और रस को शरीर पर लगाकर स्नान करने से दरिद्रता दूर होकर
ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस
का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
मृत व्यक्ति की हड्डियाँ आँवले के रस से धोकर
किसी भी नदी में प्रवाहित करने से उसकी सदगति होती है।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, का.मा. 12.75)
प्रत्येक रविवार, विशेषतः सप्तमी को आँवले का फल त्याग देना
चाहिए। शुक्रवार, प्रतिपदा, षष्ठी, नवमी, अमावस्या और सक्रान्ति को आँवले का सेवन नहीं
करना चाहिए।
आँवला-सेवन के बाद 2 घंटे तक दूध नहीं पीना
चाहिए।
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गले में तुलसी की माला धारण करने
से जीवनशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों
से मुक्ति मिलती है। तुलसी की माला पर भगवन्नाम-जप करना कल्याणकारी है।
मृत्यु के समय
मृतक के मुख में तुलसी के पत्तों का जल डालने से वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर
भगवान विष्णु के लोक में जाता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण,
प्रकृति खंडः 21.42)
तुलसी के पत्ते
सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ें। दूध में तुलसी के पत्ते नहीं डालने चाहिए तथा दूध
के साथ खाने भी नहीं चाहिए।
घर की किसी भी
दिशा में तुलसी का पौधा लगाना शुभ व आरोग्यरक्षक है।
पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी और
सूर्य-सक्रान्ति के दिन, मध्याह्नकाल, रात्रि, दोनों संध्याओं
के समय और अशौच के समय, तेल लगा के, नहाये धोये बिना
जो मनुष्य तुलसी का पत्ता तोड़ता है, वह मानो भगवान
श्रीहरि का मस्तक छेदन करता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण,
प्रकृति खंडः 21.50.51)
रोज सुबह खाली
पेट तुलसी के पाँच-सात पत्ते खूब चबाकर खायें और ऊपर से ताँबे के बर्तन में रात का
रखा एक गिलास पानी पियें। इस प्रयोग से बहुत लाभ होता है। यह ध्यान रखें कि तुलसी
के पत्तों के कण दाँतों के बीच न रह जायें।
बासी फूल और
बासी जल पूजा के लिए वर्जित है परंतु तुलसी दल और गंगाजल बासी होने पर भी वर्जित
नहीं है।
(स्कंद पुराण, वै.खंड,
मा.मा. 8.9)
फ्रेंच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा हैः 'तुलसी एक अद्भुत
औषधि है, जो ब्लडप्रेशर व
पाचनतंत्र के नियमन, रक्तकणों की
वृद्धि एवं मानसिक रोगों में अत्यन्त लाभकारी है। मलेरिया तथा अन्य प्रकार के
बुखारों में तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है।'
तुलसी
ब्रह्मचर्य की रक्षा में एवं यादशक्ति बढ़ाने में भी अनुपम सहायता करती है।
तुलसी बीज का
लगभग एक ग्राम चूर्ण रात को पानी में भिगोकर सुबह खाली पेट लेने से वीर्यरक्षण में
बहुत-बहुत मदद मिलती है।
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जो मनुष्य पीपल के वृक्ष को देखकर प्रणाम करता
है, उसकी आयु बढ़ती है तथा जो इसके नीचे बैठकर
धर्म-कर्म करता है, उसका कार्य पूर्ण हो जाता है। जो मूर्ख मनुष्य
पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय
नहीं है।
(पद्म
पुराण, खंड 7, अ.12)
'ब्रह्म पुराण' के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- 'मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित
रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई
पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।'
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से
स्पर्श करते हुए 'ॐ नमः शिवाय।' का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता
है।
घर में पीपल का वृक्ष होना उचित नहीं है परंतु
खुली जगह में पश्चिम दिशा में पीपल संपत्तिकारक है।
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स्कंद पुराण के
अनुसार रविवार और द्वादशी के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या
आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
जिस स्थान में
बिल्ववृक्षों का घना वन है, वह स्थान काशी
के समान पवित्र है।
बिल्वपत्र छः
मास तक बासी नहीं माना जाता।
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और
सोमवार को तथा दोपहर के बाद बिल्वपत्र न तोड़ें।
40 दिन तक
बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी
से छुटकारा मिलता है।
घर के आँगन में
बिल्ववृक्ष लगाने से घर पापनाशक और यशस्वी होता है। बेल का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में
हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण
में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है।
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