शीत
ऋतु में
उपयोगी पाक
शीतकाल
में पाक का
सेवन अत्यंत
लाभदायक होता है।
पाक के सेवन
से रोगों को
दूर करने में
एवं शरीर में
शक्ति लाने
में मदद मिलती
है। स्वादिष्ट
एवं मधुर होने
के कारण रोगी
को भी पाक का
सेवन करने में
उबान नहीं
आती।
पाक
बनाने की
सर्वसामान्य
विधिः पाक में
डाली जाने
वाली
काष्ठ-औषधियों
एवं सुगंधित
औषधियों का
चूर्ण अलग-अलग
करके उन्हें कपड़छान
कर लेना
चाहिए।
किशमिश,
बादाम, चारोली,
खसखस, पिस्ता,
अखरोट, नारियल
जैसी वस्तुओं
के चूर्ण को
कपड़छन करने की
जरूरत नहीं
है। उन्हें तो
थोड़ा-थोड़ा
कूटकर ही पाक
में मिला सकते
हैं।
पाक में
सर्वप्रथम
काष्ठ
औषधियाँ
डालें, फिर सुगंधित
पदार्थ
डालें। अंत
में केसर को
घी में पीसकर
डालें।
पाक तैयार
होने पर उसे
घी लगायी हुई
थाली में
फैलाकर बर्फी
की तरह छोटे
या बड़े
टुकड़ों में
काट दें। ठंडा
होने पर
स्वच्छ बर्तन
या काँच की
बरनी में भरकर
रख लें।
पाक खाने
के पश्चात दूध
अवश्य पियें।
इस दौरान मधुर
रसवाला भोजन
करें। पाक एक
दिन में ज्यादा
से ज्यादा 40
ग्राम जितनी
मात्रा तक
खाया जा सकता
है।
अदरक
पाकः अदरक
के
बारीक-बारीक
टुकड़े, गाय
का घी एवं गुड़
– इन तीनों को
समान मात्रा
में लेकर लोहे
की कड़ाही में
अथवा मिट्टी
के बर्तन में
धीमी आँच पर
पकायें। पाक
जब इतना गाढ़ा
हो जाय कि
चिपकने लगे तब
आँच पर से
उतारकर उसमें
सोंठ, जीरा,
काली मिर्च,
नागकेसर,
जायफल,
इलायची,
दालचीनी,
तेजपत्र,
लेंडीपीपर, धनिया,
स्याहजीरा,
पीपरामूल एवं
वायविंडम का चूर्ण
ऊपर की
औषधियाँ (अदरक
आदि) से चौथाई
भाग में
डालें। इस पाक
को घी लगे हुए
बर्तन में भरकर
रख लें।
शीतकाल
में प्रतिदिन
20 ग्राम की
मात्रा में इस
पाक को खाने
से दमा, खाँसी,
भ्रम,
स्वरभंग,
अरुचि,
कर्णरोग,
नासिकारोग,
मुखरोग, क्षय,
उरःक्षतरोग,
हृदय रोग,
संग्रहणी,
शूल, गुल्म
एवं तृषारोग
में लाभ होता
है।
खजूर
पाकः खारिक
(खजूर) 480 ग्राम,
गोंद 320 ग्राम,
मिश्री 380 ग्राम,
सोंठ 40 ग्राम,
लेंडीपीपर 20
ग्राम, काली
मिर्च 30 ग्राम तथा
दालचीनी,
तेजपत्र,
चित्रक एवं
इलायची 10 -10 ग्राम
डाल लें। फिर
उपर्युक्त
विधि के
अनुसार इन सब
औषधियों से
पाक तैयार
करें।
यह पाक बल
की वृद्धि
करता है,
बालकों को
पुष्ट बनाता
है तथा इसके
सेवन से शरीर
की कांति सुंदर
होकर, धातु की
वृद्धि होती
है। साथ ही
क्षय, खाँसी,
कंपवात,
हिचकी, दमे का
नाश होता है।
बादाम
पाकः बादाम
320 ग्राम, मावा 160
ग्राम, बेदाना
45 ग्राम, घी 160 ग्राम,
मिश्री 1600
ग्राम तथा
लौंग, जायफल,
वंशलोचन एवं
कमलगट्टा 5-5
ग्राम और
एल्चा (बड़ी
इलायची) एवं
दालचीनी 10-10
ग्राम लें।
इसके बाद
उपरोक्त विधि
के अनुसार पाक
तैयार करें।
नोटः बड़ी
इलायची के
गुणधर्म वही
हैं जो छोटी
इलायची के
होते हैं ऐसा
द्रव्य-गुण के
विद्वानों का
मानना है। अतः
बड़ी इलायची
भी छोटी के
बराबर ही
फायदा करेगी।
बड़ी इलायची
छोटी इलायची
से बहुत कम
दामों में
मिलती है।
इस पाक के
सेवन से वीर्यवृद्धि
होकर शरीर
पुष्ट होता
है, वातरोग
में लाभ होता
है।
मेथी
पाकः मेथी
एवं सोंठ 320-320
ग्राम की
मात्रा में
लेकर दोनों का
चूर्ण कपड़छन
कर लें। 5 लीटर 120
मि.ली. दूध में 320
ग्राम घी
डालकर उसमें
ये चूर्ण मिला
दें। यह सब
एकरस होकर
गाढ़ा हो जाय,
तक उसे पकायें।
उसके पश्चात
उसमें 2 किलो 560
ग्राम शक्कर
डालकर फिर से
धीमी आँच पर
पकायें।
अच्छी तरह पाक
तैयार हो जाने
पर नीचे उतार
लें। फिर उसमें
लेंडीपीपर,
सोंठ,
पीपरामूल,
चित्रक,
अजवाइन, जीरा,
धनिया,
कलौंजी, सौंफ,
जायफल,
दालचीनी, तेजपत्र
एवं नागरमोथ,
ये सभी 40-40 ग्राम
एवं काली
मिर्च का 60
ग्राम चूर्ण
डालकर हिलाकर
ऱख लें।
यह पाक 40
ग्राम की
मात्रा में
अथवा
पाचनशक्ति अनुसार
सुबह खायें।
इसके ऊपर दूध
न पियें।
यह पाक
आमवात, अन्य
वातरोग,
विषमज्वर,
पांडुरोग,
पीलिया,
उन्माद,
अपस्मार,
प्रमेह,
वातरक्त, अम्लपित्त,
शिरोरोग, नासिकारोग,
नेत्ररोग,
सूतिकारोग
आदि सभी में लाभदायक
है। यह पाक
शरीर के लिए
पुष्टिकारक, बलकारक
एवं वीर्य
वर्धक है।
सूंठी
पाकः 320
ग्राम सोंठ और
1 किलो 280 ग्राम
मिश्री या
चीनी को 320
ग्राम घी एवं
इससे चार गुने
दूध में धीमी
आँच पर पकाकर
पाक तैयार
करें।
इस पाक के
सेवन से
मस्तकशूल,
वातरोग,
सूतिकारोग
एवं कफरोगों
में लाभ होता
है। प्रसूति
के बाद इसका
सेवन लाभदायी
है।
अंजीर
पाकः 500
ग्राम सूखे
अंजीर लेकर
उसके 6-8
छोटे-छोटे
टुकड़े कर
लें। 500 ग्राम
देशी घी गर्म
करके उसमें अंजीर
के वे टुकड़े
डालकर 200 ग्राम
मिश्री का चूर्ण
मिला दें।
इसके पश्चात
उसमें बड़ी
इलायची 5
ग्राम,
चारोली,
बलदाणा एवं
पिस्ता 10-10
ग्राम तथा 20
ग्राम बादाम
के छोटे-छोटे
टुकड़ों को ठीक
ढंग से
मिश्रित कर
काँच की बर्नी
में भर लें।
अंजीर के
टुकड़े घी में
डुबे रहने
चाहिए। घी कम
लगे तो उसमें
और ज्यादा घी डाल
सकते हैं।
यह मिश्रण 8
दिन तक बर्नी
में पड़े रहने
से अंजीरपाक
तैयार हो जाता
है। इस
अंजीरपाक को
प्रतिदिन
सुबह 10 से 20
ग्राम की
मात्रा में
खाली पेट खायें।
शीत ऋतु में
शक्ति संचय के
लिय यह अत्यंत
पौष्टिक पाक
है। यह अशक्त
एवं कमजोर
व्यक्ति का
रक्त बढ़ाकर धातु
को पुष्ट करता
है।
अश्वगंधा
पाकः अश्वगंधा
एक बलवर्धक व
पुष्टिदायक
श्रेष्ठ रसायन
है। यह मधुर व
स्निग्ध होने
के कारण वात
का शमन एवं
रक्तादि सप्त
धातुओं का
पोषण करने
वाला है।
सर्दियों में
जठराग्नि
प्रदीप्त रहती
है। तब
अश्वगंधा से
बने हुए पाक
का सेवन करने
से पूरे वर्ष
शरीर में
शक्ति,
स्फूर्ति व
ताजगी बनी
रहती है।
विधिः 480 ग्राम
अश्वगंधा
चूर्ण को 6
लीटर गाय के
दूध में, दूध
गाढ़ा होने तक
पकायें।
दालचीनी (तज),
तेजपत्ता,
नागकेशर और
इलायची का
चूर्ण प्रत्येक
15-15 ग्राम
मात्रा में
लें। जायफल,
केशर, वंशलोचन,
मोचरस,
जटामासी,
चंदन, खैरसार
(कत्था),
जावित्री (जावंत्री),
पीपरामूल,
लौंग, कंकोल,
भिलावा की
मींगी, अखरोट
की गिरी,
सिंघाड़ा,
गोखरू का महीन
चूर्ण
प्रत्येक 7.5 – 7.5
ग्राम मात्रा
में लें। रस
सिंदूर,
अभ्रकभस्म,
नागभस्म,
बंगभस्म,
लौहभस्म
प्रत्येक 7.5 – 7.5
ग्राम मात्रा
में लें।
उपर्युक्त
सभी चूर्ण व
भस्म मिलाकर
अश्वगंधा से
सिद्ध किये
दूध में मिला
दें। 3 किलो
मिश्री अथवा
चीनी की चाशनी
बना लें। जब
चाशनी बनकर
तैयार हो जाय
तब उसमें से 1-2
बूँद निकालकर
उँगली से
देखें, लच्छेदार
तार छूटने
लगें तब इस
चाशनी में उपर्युक्त
मिश्रण मिला
दें। कलछी से
खूब घोंटे,
जिससे सब अच्छी
तरह से मिल
जाय। इस समय
पाक के नीचे
तेज अग्नि न
हो। सब
औषधियाँ
अच्छी तरह से
मिल जाने के
बाद पाक को
अग्नि से उतार
दें।
परीक्षणः
पूर्वोक्त
प्रकार से
औषधियाँ
डालकर जब पाक
तैयार हो जाता
है, तब वह कलछी
से उठाने पर तार
सा बँधकर उठता
है। थोड़ा
ठंडा करके 1-2
बूँद पानी में
डालने से
उसमें डूबकर
एक जगह बैठ
जाता है, फलता
नहीं। ठंडा
होने पर उँगली
से दबाने पर
उसमें
उँगलियों की
रेखाओं के
निशान बन जाते
हैं।
पाक को
थाली में रखकर
ठंडा करें।
ठंडा होने पर
चीनी मिट्टी
या काँच के बर्तन
में भरकर
रखें। 10 से 15
ग्राम पाक
सुबह शहद अथवा
गाय के दूध के
साथ लें।
यह पाक
शक्तिवर्धक,
वीर्यवर्धक,
स्नायु व मांसपेशियों
को ताकत देने
वाला एवं कद
बढ़ाने वाला
एक पौष्टिक
रसायन है। यह
धातु की
कमजोरी, शारीरिक-मानसिक
कमजोरी आदि के
लिए उत्तम
औषधि है। इसमें
कैल्शियम, लौह
तथा जीवनसत्व
(विटामिन्स)
भी प्रचुर
मात्रा में
होते हैं।
अश्वगंधा
अत्यंत
वाजीकर
अर्थात्
शुक्रधातु की
त्वरित
वृद्धि करने
वाला रसायन
है। इसके सेवन
से
शुक्राणुओं
की वृद्धि
होती है एवं
वीर्यदोष दूर
होते हैं।
धातु की
कमजोरी,
स्वप्नदोष,
पेशाब के साथ
धातु जाना आदि
विकारों में
इसका प्रयोग
बहुत ही
लाभदायी है।
यह पाक
अपने मधुर व
स्निग्ध
गुणों से
रस-रक्तादि
सप्तधातुओं
की वृद्धि
करता है। अतः
मांसपेशियों
की कमजोरी,
रोगों के बाद
आने वाला दौर्बल्य
तथा कुपोषण के
कारण आनेवाली
कृशता आदि में
विशेष
उपयुक्त है। इससे
विशेषतः मांस
व शुक्रधातु
की वृद्धि होती
है। अतः यह
राजयक्षमा
(क्षयरोग) में
भी लाभदायी
है। क्षयरोग
में अश्वगंधा
पाक के साथ
सुवर्ण मालती
गोली का
प्रयोग करें।
किफायती दामों
में शुद्ध
सुवर्ण मालती
व अश्वगंधा
चूर्ण आश्रम
के सभी उपचार
केन्द्रों व
स्टालों पर उपलब्ध
है।
जब धातुओं
का क्षय होने
से वात का
प्रकोप होकर
शरीर में दर्द
होता है, तब यह
दवा बहुत लाभ
करती है। इसका
असर
वातवाहिनी
नाड़ी पर
विशेष होता
है। अगर वायु
की विशेष
तकलीफ है तो
इसके साथ 'महायोगराज
गुगल'
गोली का
प्रयोग करें।
इसके सेवन
से नींद भी
अच्छी आती है।
यह वातशामक
तथा रसायन
होने के कारण
विस्मृति,
यादशक्ति की
कमी, उन्माद,
मानसिक अवसाद
(डिप्रेशन)
आदि
मनोविकारों
में भी
लाभदायी है।
दूध के साथ
सेवन करने से
शरीर में लाल
रक्तकणों की
वृद्धि होती
है, जठराग्नि
प्रदीप्त होती
है, शरीर की
कांति बढ़ती
है और शरीर में
शक्ति आती है।
सर्दियों में
इसका लाभ अवश्य
उठायें।
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