वास्तुशास्त्र
के नियमों के उचित पालन से शरीर की जैव-रासायनिक क्रिया को संतुलित रखने में
सहायता मिलती है।
घर
या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ
प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं। प्रतिदिन सुबह मुख्य द्वार के सामने हल्दी, कुमकुम व गोमूत्र मिश्रित गोबर से स्वस्तिक, कलश आदि आकारों में रंगोली बनाकर देहरी (दहलीज) एवं रंगोली की
पूजा कर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि 'हे ईश्वर ! आप मेरे घर व स्वास्थ्य की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें।'
प्रवेश-द्वार
के ऊपर नीम, आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है।
वास्तु
कि मुख्य द्वार के सामने भोजन-कक्ष, रसोईघर या खाने की मेज नहीं होनी चाहिए।
मुख्य
द्वार के अलावा पूजाघर, भोजन-कक्ष एवं तिजोरी के कमरे के दरवाजे पर भी देहरी (दहलीज)
अवश्य लगवानी चाहिए।
भूमि-पूजन, वास्तु-शांति, गृह-प्रवेश आदि सामान्यतः शनिवार एवं मंगलवार को नहीं करने
चाहिए।
गृहस्थियों को शयन-कक्ष में सफेद संगमरमर नहीं लगावाना
चाहिए| इसे मन्दिर मे लगाना उचित है क्योंकि यह पवित्रता का द्योतक है।
कार्यालय
के कामकाज,
अध्ययन आदि के लिए बैठने का स्थान छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे
मानसिक दबाव रहता है।
बीम
के नीचे वाले स्थान में भोजन बनाना व करना नहीं चाहिए। इससे आर्थिक हानि हो सकती
है। बीम के नीचे सोने से स्वास्थ्य में गड़बड़ होती है तथा नींद ठीक से नहीं आती।
जिस
घर,
इमारत आदि के मध्य भाग (ब्रह्मस्थान) में कुआँ या गड्ढा रहता है, वहाँ रहने वालों की प्रगति में रूकावट आती है एवं अनेक प्रकार
के दुःखों एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है।
घर
का ब्रह्मस्थान परिवार का एक उपयोगी मिलन स्थल है, जो परिवार को एक डोर में बाँधे रखता है।
यदि
ब्रह्मस्थान की चारों सीमारेखाओं की अपेक्षा उसका केन्द्रीय भाग नीचा हो या
केन्द्रीय भाग पर कोई वजनदार वस्तु रखी हो तो इसको बहुत अशुभ व अनिष्टकारी माना
जाता है। इससे आपकी आंतरिक शक्ति में कमी आ सकती है व इसे संततिनाशक भी बताया गया
है।
ब्रह्मस्थान
में क्या निर्माण करने से क्या लाभ व क्या हानियाँ होती हैं, इसका विवरण इस प्रकार हैः
बैठक
कक्ष- परिवार के सदस्यों में सामंजस्य
भोजन
कक्ष- गृहस्वामी को समस्याएँ, गृहनाश
सीढ़ियाँ
– मानसिक
तनाव व धन नाश
लिफ्ट
–
गृहनाश
शौचालय
– धनहानि
एवं स्वास्थ्य हानि
परिभ्रमण
स्थान – उत्तम
गृहस्वामी
द्वारा ब्रह्मस्थान पर रहने, सोने या फैक्ट्री, दफ्तर, दुकान आदि में बैठने से बाकी सभी लोग उसके कहे अनुसार कार्य
करते हैं और आज्ञापालन में विरोध नहीं करते। अपने अधीन कर्मचारी को इस स्थान पर
नहीं बैठाना चाहिए, अन्यथा उसका प्रभाव आपसे अधिक हो जायेगा। इस स्थान को कभी भी
किराये पर नहीं देना चाहिए।
नैर्ऋत्य
दिशा में यदि शौचालय अथवा रसोईघर का निर्माण हुआ हो तो गृहस्वामी को सदैव
स्वास्थ्य-संबंधी मुश्किलें रहती हैं। अतः इन्हें सर्वप्रथम हटा लेना चाहिए। चीनी 'वायु-जल' वास्तुपद्धति 'फेंगशुई' के मत से यहाँ गहरे पीले रंग का 0 वाट का बल्ब सदैव जलता रखने
से इस दोष का काफी हद तक निवारण सम्भव है।
ईशान रखें नीचा, नैर्ऋत्य रखें ऊँचा।
यदि चाहते हों वास्तु से अच्छा नतीजा।।
शौचकूप
(सैप्टिक टैंक) उत्तर दिशा के मध्यभाग में बनाना सर्वोचित रहता है। यदि वहाँ सम्भव
न हो तो पूर्व के मध्य भाग में बना सकते हैं परंतु वास्तु के नैर्ऋत्य, ईशान, दक्षिण, ब्रह्मस्थल एवं अग्नि भाग में सैप्टिक टैंक बिल्कुल नहीं
बनाना चाहिए।
प्लॉट
या मकान के नैर्ऋत्य कोने में बना कुआँ अथवा भूमिगत जल की टंकी सबसे ज्यादा
हानिकारक होती है। इसके कारण अकाल मृत्यु, हिंसाचार, अपयश, धन-नाश, खराब प्रवृत्ति, आत्महत्या, संघर्ष आदि की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है।
परिवार
के सदस्यों में झगड़े होते हों तो परिवार का मुख्य व्यक्ति रात्रि को अपने पलंग के
नीचे एक लोटा पानी रख दे और सुबह गुरुमंत्र अथवा भगवन्नाम का उच्चारण करके वह जल
पीपल को चढ़ायें। इससे पारिवारिक कलह दूर होंगे, घर में शांति होगी।
झाड़ू और पोंछा ऐसी जगह पर नहीं रखने चाहिए कि बार-बार नजरों में
आयें। भोजन के समय भी यथासंभव न दिखें, ऐसी सावधानी रखें।
घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए रोज पोंछा लगाते समय पानी
में थोड़ा नमक मिलायें। इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव घटता है। एक डेढ़ रूपया
किलो खड़ा नमक मिलता है उसका उपयोग कर सकते हैं।
घर
में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसी मूर्ति
की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या घर-परिवार में अनिष्ट होता है।
(वराह पुराणः 186.43)
50
ग्राम फिटकरी का टुकड़ा घर के प्रत्येक कमरे में तथा कार्यालय के किसी कोने में
अवश्य रखना चाहिए। इससे वास्तुदोषों से रक्षा होती है।
किसी
दुकान या प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर काले कपड़े में फिटकरी बाँधकर लटकाने से
बरकत आती है। दक्षिण भारत व अधिकांशतः दुकानों के मुख्य द्वार पर फिटकरी बाँधने का
रिवाज लम्बे समय से प्रचलित है।
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