Monday 4 February 2013

पृथ्वी के अमृत : गोदुग्ध एवं शहद


पृथ्वी के अमृतः गोदुग्ध एवं शहद




गोदुग्ध

आजकल पाउडर का अथवा सार तत्त्व निकाला हुआ या गाढ़ा माना जानेवाला भैंस का दूध पीने का फैशन चल पड़ा है इसलिए लोगों की बुद्धि भी भैंसबुद्धि बनती जा रही है। शास्त्रों ने व वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि गाय का दूध अमृत के समान है व अनेक रोगों का स्वतः सिद्ध उपचार है। गाय का दूध सेवन करने से किशोर-किशोरियों की शरीर की लम्बाई व पुष्टता उचित मात्रा में विकसित होती है, हड्डियाँ भी मजबूत बनती हैं एवं बुद्धि का विलक्षण विकास होता है। आयुर्वेद में दूध में शहद डालकर पीना विपरीत आहार माना गया है, अतः दूध और शहद एक साथ नहीं पीना चाहिए।

भारतीय नस्ल की गाय की रीढ़ में सूर्यकेतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तब यह नाड़ी सूर्य किरणों से सुवर्ण के सूक्ष्म कणों का निर्माण करती है। इसीलिए गाय के दूध-मक्खन तथा घी में पीलापन रहता है। यह पीलापन शरीर में उपस्थित विष को समाप्त अथवा बेअसर करने में लाभदायी सिद्ध होता है। गोदुग्ध का नित्य सेवन अंग्रेजी दवाओं के सेवन से शरीर में उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों (साईड इफेक्टस) का भी शमन करता है।

गोदुग्ध में प्रोटीन की 'अमीनो एसिड' की प्रचुर मात्रा होने से यह सुपाच्य तथा चरबी की मात्रा कम होने से कोलेस्ट्रोल रहित होता है।

गाय के दूध में उपस्थित 'सेरीब्रोसाइडस' मस्तिष्क को ताजा रखने एवं बौद्धिक क्षमता बढ़ाने से लिए उत्तम टॉनिक का निर्माण करते हैं।

रूस के वैज्ञानिक गाय के दूध को आण्विक विस्फोट से उत्पन्न विकिरण के शरीर पर पड़े दुष्प्रभाव को शमन करने वाला मानते हैं।

कारनेल विश्वविद्यालय में पशुविज्ञान विशेषज्ञ प्रोफेसर रोनाल्ड गोरायटे के अनुसार गाय के दूध में उपस्थित MDGI प्रोटीन शरीर की कोशिकाओं को कैंसरयुक्त होने से बचती है।

गोदुग्ध पर अनेक देशों में और भी नये-नये परीक्षण हो रहे हैं तथा सभी परीक्षणों से इसकी नवीन विशेषताएँ प्रकट हो रही हैं। धीरे-धीरे वैज्ञानिकों की समझ में आ रहा है कि भारतीय ऋषियों ने गाय को माता, अवध्य तथा पूजनीय क्यों कहा है।




शहद

शहद अदरक रस मिलाकर, चाटे परम चतुर।

श्वास, सर्दी, वेदना, निश्चित होए दूर।

शहद प्रकृति की देन है। भारत में प्राचीन काल से शहद एक उत्तम खाद्य माना जाता है। उसके सेवन से मनुष्य निरोगी, बलवान और दीर्घायु बनता है।

विविध प्रकार के फूलों में से मीठा रस चूसकर मधुमक्खियाँ अपने में संचित करती हैं। शहद की तुलना में यह रस पहले तो पतला और फीका होता है परंतु मधुमक्खियों के शरीर में संचित होने पर गाढ़ा और मीठा हो जाता है। फिर शहद के छत्ते में ज्यादा गढ़ा बनकर शहद के रूप में तैयार होता है। इस प्रकार शहद अलग-अलग फूलों के पराग, वनस्पतियों और मधुमक्खियों के जीवन के सार तत्त्व का सम्मिश्रण है। शहद केवल औषधि ही नहीं, बल्कि दूध की तरह मधुर और पौष्टिक, सम्पूर्ण आहार भी है।

शहद में स्थित लौह तत्त्व रक्त के लालकणों में वृद्धि करता है। शहद गर्मी और शक्ति प्रदान करता है।

शहद श्वास, हिचकी आदि श्वसनतंत्र के रोगों में हितकर है।

शहद में विटामिन बी का प्रमाण ज्यादा होता है जिससे उसका सेवन करने से दाह, खुजली, फुँसियाँ जैसे त्वचा के सामान्य रोगों की शिकायत नहीं रहती। अतः इन रोगों के निवारणार्थ 4-5 महीनों तक रोज प्रातः 20-20 ग्राम शहद ठण्डे पानी में मिलाकर पीना चाहिए। पतला साफ कपड़ा शहद में डुबाकर जले हुए भाग पर रखने चाहिए। पतला साफ कपड़ा शहद में डुबाकर जले हुए भाग पर रखने से खूब राहत मिलती है। शहद को जिस औषधि के साथ मिलाया जाता है उस औषधि के गुण को यह बढ़ा देता है।

शहद गरम चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए एवं उसे शहद खाने के बाद गरम पानी भी नहीं पिया जा सकता क्योंकि उष्णता मिलने पर वह विकृत हो जाता है।

एक वर्ष के बाद शहद पुराना माना जाता है। शहद जैसे-जैसे पुराना होता है वैसे-वैसे गुणकारी बनता है। शहद की सेवन-मात्रा 20 से 30 ग्राम है। बालकों को 10-15 ग्राम से और व्यस्कों को 40-50 ग्राम से ज्यादा शहद एक साथ नहीं लेना चाहिए। शहद का अजीर्ण अत्यंत हानिकारक है। शहद के दुष्परिणाम कच्ची धनिया और अनार खाने से मिटते है।

1 चम्मच शहद, 1 चम्मच अरडूसी के पत्तों के रस और आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर पीने से खाँसी मिटती है।

शहद के साथ पानी मिलाकर उसके कुल्ले करने से बढ़े हुए टॉन्सिल्स में बहुत राहत मिलती है।

शहद की कसौटी कैसे करें?

शहद में गिरी हुई मक्खी यदि उसमें से बाहर निकल आये और थोड़ी देर में उड़ सके तो जानना चाहिए कि शहद शुद्ध है। शुद्ध शहद को कुत्ते नहीं खाते। शुद्ध शहद लगाये हुए खाद्य पदार्थ को कुत्ते छोड़ देते हैं। शुद्ध शहद की बूँद पानी में डालने से तली पर बैठ जाती है। शहद में रूई की बाती डुबाकर दीपक जलाने से आवाज किये बिना जले तो शहद शुद्ध मानना चाहिए। बाजार में शहद की अमुक चिह्न की (कंपनी की) भरी शीशी मिलती है, उसे कृत्रिम शहद माना जा सकता है। कृत्रिम शहद बनाने के लिए चीनी की चाशनी के टेंकर को 6 महीने तक जमीन में दबाकर रखा जाता है और उसमें से बनाया हुआ कृत्रिम शहद प्रयोगशाला में भी पास हो सकता है। दूसरे प्रकार से भी कृत्रिम शहद बनाया जाता है। आजकल ज्यादा प्रमाण में कृत्रिम शहद ही मिलता है।



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