Friday 15 February 2013

स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार : नीम


स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार
नीम


जो व्यक्ति मीठे, खट्टे, खारे, तीखे, कड़वे और तूरे, इन छः रसों का मात्रानुसार योग्य रीति से सेवन करता है उसका स्वास्थ्य उत्तम रहता है। हम अपने आहार में गुड़, शक्कर, घी, दूध, दही जैसे मधुर, कफवर्धक पदार्थ एवं खट्टे, खारे पदार्थ तो लेते हैं किंतु कड़वे और तूरे पदार्थ बिल्कुल नहीं लेते जिसकी हमें सख्त जरूरत है। इसी कारण से आजकर अलग-अलग प्रकार के बुखार मलेरिया, टायफाइड, आँत के रोग, मधुमेह, सर्दी, खाँसी, मेदवृद्धि, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियाँ बढ़ गयी हैं।
भगवान अत्रि ने चरक संहिता में दिये अपने उपदेश में कड़वे रस का खूब बखान किया है जैसे कि
तिक्तो रसः स्वयमरोचिष्णुरोचकघ्नो विषघ्न कृमिघ्न ज्वरघ्नो दीपनः पाचनः स्तन्यशोधनो लेखः श्लेष्मोपशोषणः रक्षाशीतलश्च।
(चरक संहिता, सूत्र स्थान, अध्याय-26)
अर्थात् कड़वा रस स्वयं अरुचिकर है, फिर भी आहार के प्रति अरुचि दूर करता है। कड़वा रस शरीर के विभिन्न जहर, कृमि और बुखार दूर करता है। भोजन के पाचन में सहाय करता है तथा स्तन्य (दूध) को शुद्ध करता है। स्तनपान करानेवाली माता यदि उचित रीति से नीम आदि कड़वी चीजों का उपयोग करे तो बालक स्वस्थ रहता है।
आधुनिक विज्ञान को यह बात स्वीकार करनी ही पड़ी नीम का रस यकृत की क्रियाओं को खूब अच्छे से सुधारता है तथा रक्त को शुद्ध करता है। त्वचा के रोगों को, कृमि तथा बालों की रूसी को दूर करने में  अत्यंत उपयोगी है।




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