Wednesday, 20 February 2013
भारतीय संस्कृति की परम्पराओं में दीपक कलश स्वस्तिक और शंख का इतना महत्व आखिर क्यों ?
किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा
अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी परम्पराएँ चली आ रही हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्त्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। उनमें
से मुख्य निम्न प्रकार हैं ।
दीपक
मनुष्य के जीवन में चिह्नों और संकेतों का बहुत उपयोग
है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के दिये में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्त्व है।
दीपक हमें अज्ञान को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक
अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बने
हुए मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने
वाला तेल अपनी जीवनशक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से मेहनत करके संसार से
अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीपक हमें देता है। मंदिर में
आरती करते समय दीया जलाने के पीछे यही भाव रहा है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान
रूपी अंधकार दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश
की ओर ले चल।
दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या
की अन्धेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी यही उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी
के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरूआत भी दीपक
जलाने से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद
और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता
की ओर हमें ले चलो। ज्योत से ज्योत जगाओ इस आरती के पीछे भी यही भाव रहा है। यह है
भारतीय संस्कृति की गरिमा।
कलश
भारतीय संस्कृति की प्रत्येक प्रणाली और प्रतीक के
पीछे कोई-ना-कोई रहस्य छिपा हुआ है, जो मनुष्य जीवन के लिए लाभदायक होता
है।
ऐसा ही प्रतीक है कलश। विवाह और शुभ प्रसंगों पर उत्सवों में घर में कलश अथवा घड़े
वगैरह पर आम के पत्ते रखकर उसके ऊपर नारियल रखा
जाता है। यह कलश कभी खाली नहीं होता बल्कि दूध, घी, पानी अथवा अनाज
से भरा हुआ होता है। पूजा में भी भरा हुआ कलश ही रखने में आता है। कलश की पूजा भी की जाती
है।
कलश अपना संस्कृति का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। अपना
शरीर भी मिट्टी के कलश अथवा घड़े के जैसा ही है। इसमें जीवन होता है। जीवन का अर्थ
जल भी होता है। जिस शरीर में जीवन न हो तो मुर्दा शरीर अशुभ माना जाता है। इसी तरह
खाली कलश भी अशुभ है। शरीर में मात्र श्वास चलते हैं, उसका नाम जीवन
नहीं है, परन्तु जीवन में ज्ञान, प्रेम, उत्साह, त्याग, उद्यम, उच्च चरित्र, साहस आदि हो तो ही जीवन सच्चा जीवन
कहलाता है। इसी तरह कलश भी अगर दूध, पानी, घी अथवा अनाज से भरा हुआ हो तो ही वह कल्याणकारी कहलाता है। भरा हुआ कलश
मांगलिकता का प्रतीक है।
भारतीय संस्कृति ज्ञान, प्रेम, उत्साह, शक्ति, त्याग, ईश्वरभक्ति, देशप्रेम आदि से जीवन को भरने का संदेश देने के लिए कलश को मंगलकारी
प्रतीक मानती है। भारतीय नारी की मंगलमय भावना का मूर्तिमंत प्रतीक यानि स्वस्तिक।
स्वस्तिक
स्वस्तिक शब्द मूलभूत सु+अस धातु से बना हुआ है।
सु का अर्थ है अच्छा, कल्याणकारी,
मंगलमय और अस का अर्थ है अस्तित्व, सत्ता अर्थात कल्याण की
सत्ता और उसका प्रतीक है स्वस्तिक। किसी भी मंगलकार्य के प्रारम्भ में
स्वस्तिमंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरूआत की जाती है।
स्वस्ति न इंद्रो
वृद्धश्रवा: स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो
अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।
महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के
ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरूड़ भगवान
हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।
यह आकृति हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व
निर्मित की है। एकमेव और अद्वितीय ब्रह्म विश्वरूप में फैला, यह बात स्वस्तिक
की खड़ी और आड़ी रेखा स्पष्ट रूप से समझाती हैं। स्वस्तिक की खड़ी रेखा
ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है। स्वस्तिक
की चार भुजाएँ यानि भगवान विष्णु के चार हाथ। भगवान श्रीविष्णु अपने चारों हाथों
से दिशाओं का पालन करते हैं।
स्वस्तिक अपना प्राचीन धर्मप्रतीक है। देवताओं की
शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानि
स्वस्तिक। स्वस्तिक यह सर्वांगी मंगलमय भावना का प्रतीक है।
जर्मनी में हिटलर की नाजी पार्टी का निशान स्वस्तिक
था। क्रूर हिटलर ने लाखों यहूदियों को मार डाला। वह जब हार गया तब जिन यहूदियों की
हत्या की जाने वाली थी वे सब मुक्त हो गये। तमाम यहूदियों का दिल हिटलर और उसकी नाजी
पार्टी के लिए तीव्र घृणा से युक्त रहे यह स्वाभाविक है। उन दुष्टों का निशान
देखते ही उनकी क्रूरता के दृश्य हृदय को कुरेदने लगे यह स्वाभाविक है। स्वस्तिक को
देखते ही भय के कारण यहूदी की जीवनशक्ति क्षीण होनी चाहिए। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य
के बावजूद भी डायमण्ड के प्रयोगों ने बता दिया कि स्वस्तिक का दर्शन यहूदी की भी
जीवनशक्ति को बढ़ाता है। स्वस्तिक का शक्तिवर्धक प्रभाव इतना प्रगाढ़ है।
अपनी भारतीय संस्कृति की परम्परा के अनुसार
विवाह-प्रसंगों, नवजात शिशु की छठ्ठी के दिन, दीपावली के दिन, पुस्तक-पूजन में, घर के प्रवेश-द्वार पर, मंदिरों के प्रवेशद्बार पर तथा अच्छे शुभ प्रसंगों में स्वस्तिक का चिह्न
कुमकुस से बनाया जाता है एवं भावपूर्वक ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि हे
प्रभु! मेरा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वह पवित्र बनें।
शंख
शंख दो प्रकार के होते हैं- दक्षिणावर्त और वामवर्त।
दक्षिणावर्त शंख दैवयोग से ही मिलता है। यह जिसके पास होता है उसके पास लक्ष्मीजी
निवास करती हैं।
यह त्रिदोषनाशक, शुद्ध और नवनिधियों में एक है। ग्रह और गरीबी की पीड़ा, क्षय, विष, कृशता और नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख श्वेत
चंद्रकांत मणि जैसा होता है
वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध शंख गुणकारी नहीं है। उसे शुद्ध करके ही दवा के उपयोग मे लाया जा
सकता है।
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने
सिद्ध करके दिखाया कि शंख बजाने से जहाँ तक उसकी ध्वनि पहुँचती है वहाँ तक रोग
उत्पन्न करने वाले हानिकारक जीवाणु (बैक्टीरिया) नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण अनादि
काल से प्रातःकाल और संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज चला आ रहा है।
संध्या के समय शंख बजाने से भूत-प्रेत-राक्षस आदि भाग
जाते हैं। संध्या के समय हानिकारक जीवाणु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं। उस समय
शंख बजाना आरोग्य के लिए फायदेमंद है।
गूँगेपन में शंख बजाने से एवं तुतलेपन, मुख की कांति के
लिए, बल के लिए, पाचनशक्ति के लिए और
भूख बढ़ाने के लिए, श्वास-खाँसी,
जीर्णज्वर और हिचकी में शंखभस्म का औषधि की तरह उपयोग करने से लाभ होता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment