Friday 22 February 2013

वीर्यरक्षण ही जीवन है




वीर्यरक्षण ही जीवन है

      वीर्य इस शरीररूपी नगर का एक तरह से राजा ही है | यह वीर्यरूपी राजा यदि पुष्ट है, बलवान् है तो रोगरूपी शत्रु कभी शरीररूपी नगर पर आक्रमण नही करते | जिसका वीर्यरूपी राजा निर्बल है, उस शरीररूपी नगर को कई रोगरूपी शत्रु आकर घेर लेते हैं | इसीलिए कहा गया है :

           मरणं बिन्दोपातेन जीवनं बिन्दुधारणात् |

बिन्दुनाश (वीर्यनाश) ही मृत्यु है और बिन्दुरक्षण ही जीवन है |

जैन ग्रंथों में अब्रह्मचर्य को पाप बताया गया है :
           अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिठ्ठियम् |

अब्रह्मचर्य घोर प्रमादरूप पाप है | (दश वैकालिक सूत्र: 6.17)

अथर्वेद में इसे उत्कृष्ट व्रत की संज्ञा दी गई है:
           व्रतेषु वै वै ब्रह्मचर्यम् |

वैद्यकशास्त्र में इसको परम बल कहा गया है :
     ब्रह्मचर्यं परं बलम् | ब्रह्मचर्य परम बल है |

वीर्यरक्षण की महिमा सभी ने गायी है | योगीराज गोरखनाथ ने कहा है :

     कंत गया कूँ कामिनी झूरै | बिन्दु गया कूँ जोगी ||

पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन से योगी पश्चाताप करता है |

भगवान शंकर ने तो यहाँ तक कह दिया कि इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान् महिमा हुई है :
     

     यस्य प्रसादान्महिमा ममाप्येतादृशो भवेत् |



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