Tuesday 19 February 2013

जीवनशक्ति का विकास कैसे हो ?.....


जीवनशक्ति का विकास कैसे हो ?.....



छात्रों के महान आचार्य पूज्य बापू जी द्वारा सूक्ष्म विश्लेषण


क्या है जीवनशक्ति ? जीवनशक्ति को आधुनिक भाषा में ʹलाइफ एनर्जीʹ और योग की भाषा में ʹप्राणशक्तिʹ कहते हैं। यह हमारी भीतरी शक्ति है, जो अनेक पहलुओं से प्रभावित होती है। हमारे शारीरिक व मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवनशक्ति है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने योगदृष्टि से, अंतर्दृष्टि से और जीवन का सूक्ष्म निरीक्षण करके जीवनशक्ति विषयक गहनतम रहस्य खोजे थे। जो निष्कर्ष ऋषियों ने खोजे थे उनमें से कुछ निष्कर्षों को समझने में आधुनिक वैज्ञानिकों को अभी सफलता प्राप्त हुई है। विदेश के कई बुद्धिमान, विद्वान, वैज्ञानिक वीरों ने विश्व के समक्ष हमारे ऋषि-महर्षियों के आध्यात्मिक खजाने को प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया कि वह खजाना कितना सत्य और जीवनोपयोगी है ! डॉ. डायमण्ड ने जीवनशक्ति पर गहन अध्ययन व प्रयोग किये हैं। (जीवनशक्ति को प्रभावित करने वाले आठ घटकों में से निम्निलिखित दो घटकों पर हम विचार करेंगे।)


मानसिक आघात, खिंचाव, तनाव या घबराहट का प्रभाव


डॉ. डायमण्ड ने कई प्रयोग करके देखा कि जब व्यक्ति अचानक कोई तीव्र आवाज सुनता है तो उसी समय उसकी जीवनशक्ति क्षीण हो जाती है, वह घबरा जाता है।


शक्ति सुरक्षा का एक अदभुत उपाय


तालुस्थान (दाँतों से करीब आधा सें.मी. पीछे) में जिह्वा लगाने से जीवनशक्ति केन्द्रित हो जाती है और मस्तिष्क के दायें व बायें भागों में संतुलन रहता है। जब ऐसा संतुलन होता है तब व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, सर्जनात्मक प्रवृत्ति खिलती है और प्रतिकूलताओं का सामना सरलता से हो सकता है।
जब सतत् मानसिक तनाव-खिंचाव, घबराहट का समय हो तब जिह्वा को तालुस्थान से लगाये रखने से जीवनशक्ति क्षीण नहीं होती।


संत दर्शन से जीवनशक्ति का विकास


देवी-देवताओं, संतों-महापुरुषों के चित्रों के दर्शन से अनजाने में ही जीवनशक्ति का लाभ होता रहता है।
कुदरती दृश्य, प्राकृतिक सौंदर्य के चित्र, जलराशि, सरिता-सरोवर-सागर आदि देखने से, हरियाली एवं वन आदि देखने से, आकाश की ओर निहारने से हमारी जीवनशक्ति बढ़ती है। इसीलिए हमारे देवी-देवताओं के चित्रों में पीछे की ओर इस प्रकार के दृश्य रखे जाते हैं।
किसी प्रिय सात्त्विक काव्य, गीत, भजन, श्लोक आदि का वाचन, पठन, उच्चारण करने से भी जीवनशक्ति का संरक्षण होता है। चलते वक्त दोनों हाथ स्वाभाविक ही आगे-पीछे हिलते हैं, इससे भी जीवनशक्ति का विकास होता है।




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