Monday 18 February 2013
तन-मन से निरोग-स्वस्थ व तेजस्वी संतान-प्राप्ति के नियम
तन-मन से
निरोग-स्वस्थ व तेजस्वी संतान-प्राप्ति के नियम
गृहस्थ जीवन की सफलता उत्तम संतान
की प्राप्ति में मानी जाती है किन्तु मनुष्य यह नहीं जानता कि कुछ नियमों का पालन
उसे दिव्य, तेजस्वी एवं ओजस्वी संतान प्रदान करने में सहायक
होता है। अगर निम्नांकित नियमों को जानकर उसका पालन किया जाये तो उत्तम, स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो सकती
है।
ऋतुकाल की चौथी, छठी, आठवीं और बारहवीं रात्रि में
स्त्रीसंग करके पुरुष दीर्घायुवाला पुत्र उत्पन्न करता है। पुत्र की इच्छा रखनेवाली
स्त्री को इस रात्रि में लक्ष्मणा (हनुमान बेल) की जड़ को दूध में घिसकर उसकी दो
तीन बूँदे दायें नथुने में डालनी चाहिए।
ऋतुकाल की पाँचवी, नवमी और ग्यारहवीं रात्रि में
स्त्रीसंग करके गुणवान कन्या उत्पन्न करता है किन्तु सातवीं रात्रि में स्त्रीसंग
करने से दुर्भांगी कन्या उत्पन्न होती है।
ऋतुकाल की तीन रात्रियों में, प्रदोष काल में, अमावस्या, पूर्णिमा, ग्यारस अथवा ग्रहण के दिनों में
एवं श्राद्ध तथा पर्व दिनों में संयम न रखने वाले गृहस्थों के यहाँ कम आयुवाले, रोगी, दुःख देने वाले एवं विकृत अंगवाले
बच्चों का जन्म होता है। अतः इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
तेजस्वी पुत्र की इच्छा रखनेवाले
स्त्री-पुरुष दोनों को उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर शैया पर निम्नलिखित वेदमंत्र
पढ़ना चाहिए।
अहिरसि, आयुरसि, सर्वतः प्रतिष्ठासि
धाता।
त्वा दधातु विधाता
त्वा दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेदिति।।
ब्रह्मा
बृहस्पतिर्विष्णुः सोमः सूर्यस्तथाऽश्विनौ।
भगोऽथ मित्रावरु्णौ
वीरं दधतु मे सुतम्।।
गर्भवती स्त्री द्वारा रखने योग्य सावधानी
उकड़ू बैठना, ऊँचे नीचे स्थान एवं कठिन आसन में
बैठना, वायु, मल-मूत्र का वेग रोकना, शरीर जिसके लिए अभ्यस्त न हो ऐसा
कठिन व्यायाम करना, तीखे, गरम, खट्टे, दही एवं मावे की मिठाइयों जैसे
पदार्थों का अति सेवन करना, गहरी खाई अथवा ऊँचे जलप्रपात हों ऐसे स्थलों पर जाना, शरीर अत्यंत हिले-डुले ऐसे वाहनों
में मुसाफिरी करना, हमेशा चित्त सोना-ये सब कार्य और व्यवहार गर्भ को
नष्ट करने वाले हैं अतः गर्भिणी को इनसे बचना चाहिए।
जिनका गर्भ गिर जाता हो वे माताएँ
गर्भरक्षक मंत्र (जो कि मंत्र की इच्छुक माताओं को ध्यान योग शिविर में दिया जाता
है।) पढ़ते हुए एक काले धागे पर 21 गाँठे लगायें व 21 बार गर्भरक्षक मंत्र पढ़कर
पेट पर बाँधें। इससे गर्भ की रक्षा होती है।
जो गर्भिणी स्त्री खुले प्रदेश में, एकांत में अथवा हाथ-पैर को खूब
फैलाकर सोने के स्वभाव वाली हो अथवा रात्रि के समय में बाहर घूमने के स्वभाववाली
हो तो वह स्त्री उन्मत्त-पागल संतान को जन्म देती है।
लड़ाई-झगड़े, हाथापाई एवं कलह करने के
स्वभाववाली स्त्री अपस्मार या मिर्गी के रोगवाली संतान को जन्म देती है।
यदि गर्भावस्था में मैथुन का सेवन
किया जाये तो खराब देहवाली, लज्जारहित, स्त्रीलंपट संतान उत्पन्न होती
है। गर्भावस्था में शोक, क्रोध एवं दुष्ट कर्मों का त्याग करना चाहिए।
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