Friday 15 February 2013

शिव स्वरोदय(भाग-10)


शिव स्वरोदय(भाग-10)


अङ्गुष्ठतर्जनीवंशे पादाङ्गुष्ठे तथा ध्वनिः।
युद्धकाले च कर्त्तव्यो लक्षयोद्धु जयीभवेत्।।244।।
अन्वय - युद्धकाले अङ्गुष्ठतर्जनीवंशे पादाङ्गुष्ठे तथा ध्वनिः च कर्त्तव्यो लक्षयोद्धु जयीभवेत्।
भावार्थयुद्ध के दौरान हाथ के अंगूठे तथा तर्जनी से अथवा पैर के अंगूठे से ध्वनि करने वाला योद्धा बड़े-बड़े बहादुर को भी युद्ध में पराजित कर देता है।
English Translation – During the war creation of sound with thumb and index finger or with big toe gives victory even over mightiest enemy.
निशाकरे रवौ चारे मध्ये यस्य समीरणः।
स्थितो रक्षेद्दिगन्तानि जयकाञ्क्षी गतः सदा।।245।।    
अन्वय - जयकाञ्क्षी निशाकरे रवौ चारे मध्ये यस्य समीरणः स्थितो दिगन्तानि गतः सदा रक्षेत्।
भावार्थविजय चाहनेवाला वीर चन्द्र अथवा सूर्य स्वर में वायु तत्त्व के प्रवाहकाल के समय यदि किसी भी दिशा में जाय तो उसकी रक्षा होती है।
English Translation – A hero, who is desirous of victory, can move in any direction when Vayu Tattva is active in any Swara, i.e. running of breath through left or right nostril (but not during the time when it is running through both the nostrils at a time).
श्वासप्रवेशकाले तु दूतो जल्पति वाञ्छितम्।
तस्यार्थः सिद्धिमायाति निर्गमे नैव सुन्दरि।।246।।
अन्वययह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ भगवान शिव कहते हैं, हे सुन्दरी (माँ पार्वती), एक दूत को अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उसे साँस लेते समय अपनी मनोकामना व्यक्त करनी चाहिए। परन्तु यदि वह श्वास छोड़ते समय अपनी मनोकामना व्यक्त करता है, तो उसे सफलता नहीं मिलती।
English Translation – Lord Shiva said, “O Beautiful Goddess, If a messenger expresses his desires while breathing in, he succeeds to get them fulfilled. But if the desire is expressed while breathing out, it never gets fulfilled.
लाभादीन्यपि कार्याणि पृष्ठानि कीर्तितानि च।
जीवे विशति सिद्धयन्ति हानिर्निःसरणे भवेत्।।247।।
अन्वयजीवे विशति लाभादीन्यपि कार्याणि पृष्ठानि कीर्तितानि च सिद्धयन्ति हानि निःसरणे हानिः भवेत्।
भावार्थजो कार्य साँस लेते समय किए जाता है, उसमें सफलता मिलती है। पर साँस छोड़ते समय किए गए कार्य में हानि होती है।
English Translation – The success is achieved in a work when it is done while breathing in and it causes loss if done while breathing out.
नरे दक्ष स्वकीया च स्त्रियां वामा प्रशस्यते।
कुम्भको युद्धकाले च तिस्रो नाड्यस्त्रयीगतिः।।248।।
अन्वय - नरे दक्ष स्वकीया च स्त्रियां वामा प्रशस्यते युद्धकाले कुम्भको च तिस्रो नाड्यस्त्रयीगतिः।
भावार्थदाहिना स्वर पुरुष के लिए और बाँया स्वर स्त्री के लिए शुभ माना गया है। युद्ध के समय कुम्भक (श्वास को रोकना) फलदायी होता है। इस प्रकार तीनों नाड़ियों के प्रवाह भी तीन प्रकार के होते हैं।
English Translation – Flow of breath through right nostril is auspicious for gents and breath of left for ladies. Holding of breath during war is useful. Thus there three types flow of breath as there are three types of nadis.
हकारस्य सकारस्य विना भेदं स्वरः कथम्।
सोSहं हंसपदेनैव जीवो जपति सर्वदा।।249।।
अन्वयश्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थस्वर ज्ञान हंऔर सःमें प्रवेश किए बिना प्राप्त नहीं होता। सोSहंअथवा हंसपद (मंत्र) के सतत जप द्वारा स्वर ज्ञान की प्राप्ति होती है।
English Translation – Ham and Sah are the door to acquire the knowledge of Swar science. It is said that continued repetition of Soham or Hamsah is the key for enlightenment through Swar science.
शून्याङ्गं पूरितं कृत्वा जीवाङ्गे गोपयेज्जयम्।
जीवाङ्गे घातमाप्नोति शून्याङ्गे रक्षते सदा।।250।।
अन्वयश्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थआपत्ति सदा सक्रिय स्वर की ओर से आती है। अतएव आपत्ति के आने की दिशा ज्ञात होने पर निष्क्रिय स्वर को सक्रिय करने का प्रयास करना चाहिए। निष्क्रिय स्वर सुरक्षा देता है।
English Translation – The problem arises always from the side through which nostril the breath is running. Therefore if the direction of the arising problem is known, we should make efforts to change the side of breath. Because the side is always safe through which breath is inactive.
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वामे वा यदि वा दक्षे यदि पृच्छति पृच्छकः।
पूर्णे घातो न जायेत शून्ये घातं विनिर्दिशेत्।।251।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ - जब कोई प्रश्नकर्ता युद्ध के विषय में सक्रिय स्वर की ओर से प्रश्न पूछ रहा हो और उस समय कोई भी स्वर, चाहे सूर्य या चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो युद्ध में उस पक्ष को कोई हानि नहीं होती। पर अप्रवाहित स्वर की दिशा से प्रश्न पूछा गया हो, तो हानि अवश्यम्भावी है। अगले दो श्लोकों में होनेवाली हानियों पर प्रकाश डाला गया है।
English Translation – When a person asks about the result of a war from the active side of breath irrespective of right nostril or left nostril, the party will not face any problem. But if he puts question from the side of silent nostril, loss is predicted. The types of losses are described in the following two verses.
भूतत्त्वेनोदरे घातः पदस्थानेSम्बुना भवेत्।
उरुस्थानेSग्नितत्त्वेन करस्थाने च वायुना।।252।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि प्रश्न-काल में उत्तर देनेवाले साधक के स्वर में पृथ्वी तत्त्व प्रवाहित हो, समझना चाहिए कि पेट में चोट लगने की सम्भावना, जल तत्त्व, अग्नि तत्त्व और वायु तत्त्व के प्रवाह काल में क्रमशः पैरों, जंघों और भुजा में चोट लगने की सम्भावना बतायी जा सकती है।
English Translation – If in the breath of Swar Sadhaka Prithvi Tattva is active at the time of inquiry, injury in abdomen may be predicted. Similarly during the flow of Jala, Agni and Vayu Tattvas indicate injuries in legs, thighs and arms respectively.
शिरसि व्योमतत्त्वे च ज्ञातव्यो घातनिर्णयः।
एवं पञ्चविधो घातः स्वरशास्त्रे प्रकाशितः।।253।।
अन्वय - व्योमतत्त्वे शिरसि च घातनिर्णयः ज्ञातव्यो स्वरशास्त्रे प्रकाशितः एवं पञ्चविधो घातः।
भावार्थ आकाश तत्त्व के प्रवाह काल में सिर में चोट लगने की आशंका का निर्णय बताया जा सकता है। स्वरशास्त्र इस प्रकार चोट के लिए पाँच अंग विशेष बताए गए हैं।
English Translation – In case Akash Tattva is active in the breath, possibility of getting the head injury may be predicted. Thus Swar Shastra indicates five types of injuries according to the flow of Tattvas in the breath.
युद्धकाले यदा चन्द्रः स्थायी जयति निश्चितम्।
यदा सूर्यप्रवाहस्तु यायी विजयते सदा।।254।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि युद्धकाल में चन्द्र स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो जहाँ युद्ध हो रहा है वहाँ का राजा विजयी होता है। किन्तु यदि सूर्य स्वर प्रवाहित हो रहा हो, समझना चाहिए कि आक्रामणकारी देश की विजय होगी।
English Translation – If the left nostril is active with breath during the war, the victory goes with the king where the war is going on. But in case of flow of right nostril, the attacking party will win.
जयमध्येSपि संदेहे नाडीमध्ये तु लक्षयेत्।
सुषुम्नायां गते प्राणे समरे शत्रुसङ्कटम्।।255।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ विजय में यदि किसी प्रकार का संदेह हो, तो देखना चाहिए कि क्या सुषुम्ना स्वर प्रवाहित हो रहा है। यदि ऐसा है, तो समझना चाहिए कि शत्रु संकट में पड़ेगा।
English Translation – In case of doubt about the victory, one should check whether breath is flowing through both nostrils. If so, it should be concluded that the enemy is going to face trouble.
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यस्यां नाड्यां भवेच्चारस्तां दिशं युधि संश्रयेत्।
तदाSसौ जयमाप्नोति नात्रकार्या विचारणा।।256।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि कोई योद्धा युद्ध के मैदान में अपने क्रियाशील स्वर की ओर से दुश्मन से लड़े तो उसमें उसकी विजय होती है, इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं होती।
English Translation – In case a fighter fights from the side of the active nostril with breath, he gets victory undoubtedly.
यदि सङ्ग्रामकाले तु वामनाडी सदा वहेत्।
स्थायिनो विजयं विद्याद्रिपुवश्यादयोSपि च।।257।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि युद्ध के समय बायीं नाक से स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो जहाँ युद्ध हो रहा है, उस स्थान के राजा की विजय होती है, अर्थात् जिस पर आक्रमण किया गया है, उसकी विजय होती है और शत्रु पर काबू पा लिया जाता है।
English Translation – If breath flows through left nostril at the time of war, the king, at whose place the war is on, will be victorious and the enemy will be captured.
यदि सङ्ग्रामकाले च सूर्यस्तु व्यावृतो वहेत्।
तदा यायी जयं विद्यात् सदेवासुरमानवे।।258।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ पर यदि युद्ध के समय लगातार सूर्य स्वर प्रवाहित होता रहे, तो समझना चाहिए कि आक्रमणकारी राजा की विजय होती है, चाहे देवता और दानवों का युद्ध हो या मनुष्यों का।
English Translation – But when at the time of war the breath flows continuously from the right nostril, the attacking side will get the victory, whether the war is between gods and demons or between the two sides of human beings.
रणे हरति शत्रुस्तं वामायां प्रविशेन्नरः।
स्थानं विषुवचारेण जयः सूर्येण धावता।।259।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ जो योद्धा बाएँ स्वर के प्रवाहकाल में युद्ध भूमि में प्रवेश करता है, तो उसका शत्रु द्वारा अपहरण हो जाता है। सुषुम्ना के प्रवाहकाल में वह युद्ध में स्थिर रहता है, अर्थात् टिकता है। पर सूर्य स्वर के प्रवाहकाल में वह निश्चित रूप से विजयी होता है।
English Translation – If a warrior enters the war-field during the time of flow of breath through left nostril, he is kidnapped by his enemy. In case of flow of breath through both the nostrils simultaneously, he will stay in war. But the flow of right nostril with breath will give him victory.
युद्धे द्वये कृते प्रश्न पूर्णस्य प्रथमे जयः।
रिक्ते चैव द्वितीयस्तु जयी भवति नान्यथा।।260।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि कोई सक्रिय स्वर की ओर से युद्ध के परिणाम के विषय में प्रश्न पूछे, तो जिस पक्ष का नाम पहले लेगा उसकी विजय होगी। परन्तु यदि निष्क्रिय स्वर की ओर से प्रश्न पूछता है, तो दूसरे नम्बर पर जिस पक्ष का नाम लेता है उसकी विजय होगी।
English Translation – In case someone puts query about the result of the war from the side of active breath, the side which name comes first will be victorious. But when question is put from the breathless side, the side will get victory which name comes in second place.
पूर्णनाडीगतः पृष्ठे शून्याङ्गं च तदाग्रतः।
शून्यस्थाने कृतः शत्रुर्म्रियते नात्र संशयः।।261।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव इसे नहीं दिया जा रहा है।
भावार्थ जब कोई सैनिक सक्रिय स्वर की दिशा में युद्ध के लिए प्रस्थान करे, तो उसका शत्रु संकटापन्न होगा। पर यदि निष्क्रिय स्वर की दिशा में युद्ध के लिए जाता है, तो शत्रु से उसका सामना होने की संभावना होगी। यदि युद्ध में शत्रु को निष्क्रिय स्वर की ओर रखकर वह युद्ध करता है, तो शत्रु की मृत्य अवश्यम्भावी है।
English Translation – When a soldier moves for a war in the direction of active breath, his enemy will get trouble. But if he moves in the direction of inactive breath, he has to face his enemy. When he fights with
enemy by keeping him in the side of inactive breath, the death of enemy is sure.
वामाचारे समं नाम यस्य तस्य जयी भवेत्।
पृच्छको दक्षिणभागे विजयी विषमाक्षरः।।262।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि प्रश्नकर्त्ता स्वरयोगी से उसके चन्द्र स्वर के प्रवाहकाल में बायीं ओर या सामने से प्रश्न करता है और उसके नाम में अक्षरों की संख्या सम हो, तो समझना चाहिए कि कार्य में सफलता मिलेगी। यदि वह दक्षिण की ओर से प्रश्न करता है और उसके नाम में वर्णों की संख्या विषम हो, तो भी सफलता की ही सम्भावना समझना चाहिए।
English Translation – During the flow of breath through left nostril of the replying authority and the questioner, being letters in his name in even number, puts query from the left side or front side, success can be predicted, and if his name has letters in odd numbers and he asks question from the right or back side, the same result is predicted.
यदा पृच्छति चन्द्रस्य तदा संधानमादिशेत्।
पृच्छेद्यदा तु सूर्यस्य तदा जानीहि विग्रहम्।।263।।
अन्वय यह श्लोक भी लगभग अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि प्रश्न पूछते समय चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो संधि की सम्भावना समझनी चाहिए। लेकिन यदि उस समय सूर्य स्वर चल रहा हो, तो समझना चाहिए कि युद्ध के चलते रहने की सम्भावना है।
English Translation – If at the time question regarding war, the answering person has the breath flowing through left nostril, a compromise between both the side can be predicted. But when at the time question the breath is active right nostril, continuation of war should be the right prediction.
पार्थिवे च समं युद्धं सिद्धिर्भवति वारुणे।
युद्धेहि तेजसो भङ्गो मृत्युर्वायौ नभस्यपि।।264।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में ही है।
भावार्थ चन्द्र स्वर या सूर्य स्वर प्रवाहित हो, लेकिन यदि प्रश्न के समय सक्रिय स्वर में पृथ्वी तत्त्व प्रवाहित हो, समझना चाहिए कि युद्ध कर रहे दोनों पक्ष बराबरी पर रहेंगे। जल तत्त्व के प्रवाह काल में जिसकी ओर से प्रश्न पूछा गया है उसे सफलता मिलेगी। प्रश्न काल में स्वर में अग्नि तत्त्व के प्रवाहित होने पर चोट लगने की सम्भावना व्यक्त की जा सकती है। किन्तु यदि वायु या आकाश तत्त्व प्रवाहित हो, तो पूछे गए प्रश्न का उत्तर मृत्यु समझना चाहिए।
English Translation – Whether the breath is active in left or right nostril, but Prithvi (earth) Tattva is present in the breath at the time of questioning about a war, both the sides will be equally powerful. In case of presence of Jala (water) Tattva in the breath, success to the side of questioner is predicted. Presence of Agni (fire) Tattva in the breath predicts getting wounded in the war. But if Vayu (air) or Akash (ether) Tattva is present in the breath, answer to the question is death only.
इन श्लोकों में भी कुछ पिछले अंकों की भाँति ही नीचे के प्रथम दो श्लोकों में प्रश्न का उत्तर जानने की युक्ति बतायी गयी है। शेष तीन श्लोकों में कार्य में सफलता प्राप्त करने के कुछ तरीके बताए गए हैं।
समझने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए नीचे के प्रथम दो श्लोकों को एक साथ लिया जा रहा है-
निमित्ततः प्रमादाद्वा यदा न ज्ञायतेSनिलः।
पृच्छाकाले तदा कुर्यादिदं यत्नेन बुद्धिमान्।।265।।
निश्चलं धरणं कृत्वा पुष्पं हस्तान्निपातयेत्।
पूर्णाङ्गे पुष्पपतनं शून्यं वा तत्परं भवेत्।।266।।
अन्वय
भावार्थ यदि किन्हीं कारणों से प्रश्न पूछने के समय यदि स्वर-योगी सक्रिय स्वर का निर्णय न कर पाये, तो सही उत्तर देने के लिए वह निश्चल हो बैठ जाय और ऊपर की ओर एक फूल उछाले। यदि फूल प्रश्नकर्त्ता के पास उसके सामने गिरे, तो शुभ होता है। पर यदि फूल प्रश्नकर्त्ता के दूर गिरे या उसके पीछे जाकर गिरे, तो अशुभ समझना चाहिए।
English Translation – In case, due to any reason a Swar Yogi is unable to decide about the active breath at the time of answering a question, he should quietly sit and make his body still and through a flower upward. If the flower falls in front the questioner nearby, the answer is positive. But if it falls away from him or in his back side, the answer is negative.
तिष्ठन्नुपविशंश्चापि प्राणमाकर्षयन्निजम्।
मनोभङ्गमकुर्वाणः सर्वकार्येषु जीवति।।267।।
अन्वय तिष्ठन् उपविशन् च अपि मनोभङ्गम् अकुर्वाणः निजं प्राणं आकर्षयन् सर्वकार्येषु जीवति।
भावार्थ खड़े होकर अथवा बैठकर अपने प्राण (श्वास) को एकाग्र चित्त होकर अन्दर खींचते हुए यदि कोई व्यक्ति जो कार्य करता है उसमें उसे अवश्य सफलता मिलती है।
English Translation – If a person with concentration, either by sitting or standing, starts a work while breathing in, he gets success.
न कालो विविधं घोरं न शस्त्रं न च पन्नगः।
न शत्रु व्याधिचौराद्याः शून्यस्थानाशितुं क्षमाः।।268।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि कोई व्यक्ति सुषुम्ना के प्रवाहकाल में ध्यानमग्न हो, तो न कोई शस्त्र, न कोई समर्थ शत्रु और न ही कोई सर्प उसे मार सकता है।
English Translation – If a person is absorbed in meditation during the flow of breath simultaneously through both the nostrils, his enemy, whoever it may, cannot kill him, no weapon can kill him and none of snakes too.
जीवेनस्थापयेद्वायु जीवेनारम्भयेत्पुनः।
जीवेन क्रीडते नित्यं द्युते जयति सर्वदा।।269।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ यदि कोई व्यक्ति सक्रिय स्वर से श्वास अन्दर ले और अन्दर लेते हुए कोई कार्य प्रारम्भ करे तथा जूआ खेलने बैठे और सक्रिय स्वर से लम्बी साँस ले, तो वह सफल होता है।
English Translation – If a person breathes in through the active side and starts work while breathing in, and gambles by deep breathing in, he always gets success.
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