Tuesday, 1 January 2013
वसंत ऋतुचर्या
वसंत ऋतु
की महिमा के
विषय में
कवियों ने खूब
लिखा है।
गुजराती
कवि दलपतराम
ने कहा हैः
रूडो
जुओ आ ऋतुराज
आव्यो। मुकाम
तेणे वनमां जमाव्यो।।
अर्थात्
देखो,
सुंदर यह
ऋतुराज आया।
आवास उसने वन
को बनाया।।
वसंत का
असली आनंद जब
वन में से
गुजरते हैं तब
उठाया जा सकता
है।
रंग-बिरंगे पुष्पों
से आच्छादित
वृक्ष..... शीतल
एवं मंद-मंद बहती
वायु.....
प्रकृति
मानों, पूरी
बहार में होती
है। ऐसे में
सहज ही प्रभु
का स्मरण हो
आता है, सहज ही
में
ध्यानावस्था
में पहुँचा जा
सकता है।
ऐसी सुंदर
वसंत ऋतु में
आयुर्वेद ने
खान-पान में
संयम की बात
कहकर व्यक्ति
एवं समाज की
नीरोगता का
ध्यान रखा है।
जिस
प्रकार पानी
अग्नि को बुझा
देता है वैसे
ही वसंत ऋतु
में पिघला हुआ
कफ जठराग्नि
को मंद कर
देता है।
इसीलिए इस ऋतु
में लाई, भूने
हुए चने, ताजी
हल्दी, ताजी
मूली, अदरक,
पुरानी जौ,
पुराने गेहूँ
की चीजें खाने
के लिए कहा गया
है। इसके
अलावा मूँग
बनाकर खाना भी
उत्तम है।
नागरमोथ अथवा
सोंठ डालकर
उबाला हुआ
पानी पीने से
कफ का नाश
होता है।
देखो,
आयुर्वेद
विज्ञान की
दृष्टि कितनी
सूक्ष्म है !
मन को
प्रसन्न करें
एवं हृदय के
लिए हितकारी हों
ऐसे आसव,
अरिष्ट जैसे
कि
मध्वारिष्ट,
द्राक्षारिष्ट,
गन्ने का रस,
सिरका आदि
पीना इस ऋतु
में लाभदायक
है।
वसंत ऋतु
में आने वाला
होली का
त्यौहार इस ओर
संकेत करता है
कि शरीर को
थोड़ा सूखा
सेंक देना
चाहिए जिससे
कफ पिघलकर
बाहर निकल
जाय। सुबह जल्दी
उठकर थोड़ा
व्यायाम करना,
दौड़ना अथवा गुलाटियाँ
खाने का
अभ्यास
लाभदायक होता
है।
मालिश
करके सूखे
द्रव्य आँवले,
त्रिफला अथवा चने
के आटे आदि का
उबटन लगाकर
गर्म पानी से
स्नान करना
हितकर है।
आसन,
प्राणायाम
एवं टंक विद्या
की मुद्रा
विशेष रूप से
करनी चाहिए।
दिन में
सोना नहीं
चाहिए। दिन
में सोने से
कफ कुपित होता
है। जिन्हें रात्रि
में जागना
आवश्यक हो वे
थोड़ा सोयें तो
ठीक है। इस
ऋतु में
रात्रि-जागरण
भी नहीं करना
चाहिए।
वसंत ऋतु
में सुबह खाली
पेट हरड़े का
चूर्ण शहद के
साथ सेवन करने
से लाभ होता
है। इस ऋतु
में कड़वे नीम
में नयी
कोंपलें
फूटती हैं।
नीम की 15-20
कोंपलें 2-3
काली मिर्च के
साथ चबा-चबाकर
खानी चाहिए। 15-20
दिन यह प्रयोग
करने से
वर्षभर
चर्मरोग,
रक्तविकार और
ज्वर आदि
रोगों से
रक्षा करने की
प्रतिरोधक
शक्ति पैदा
होती है एवं
आरोग्यता की
रक्षा होती है।
इसके अलावा
कड़वे नीम के
फूलों का रस 7
से 15 दिन तक
पीने से त्वचा
के रोग एवं
मलेरिया जैसे
ज्वर से भी
बचाव होता है।
मधुर
रसवाले
पौष्टिक
पदार्थ एवं
खट्टे-मीठे रसवाले
फल आदि पदार्थ
जो कि शीत ऋतु
में खाये जाते
हैं, उन्हें
खाना बंद कर
देना चाहिए
क्योंकि वे कफ
को बढ़ाते
हैं। वसंत ऋतु
के कारण स्वाभाविक
ही पाचनशक्ति
कम हो जाती है,
अतः पचने में
भारी
पदार्थों का
सेवन नहीं
करना चाहिए।
ठंडे पेय,
आइसक्रीम,
बर्फ के गोले
चॉकलेट, मैदे
की चीजें,
खमीरवाली
चीजें, दही
आदि पदार्थ
बिल्कुल
त्याग देने
चाहिए।
धार्मिक
ग्रंथों के
वर्णनानुसार
चैत्र मास के
दौरान 'अलौने
व्रत'
(बिना नमक के
व्रत) करने से
रोगप्रतिकारक
शक्ति बढ़ती
है एवं त्वचा
के रोग, हृदय के
रोग, उच्च
रक्तचाप (हाई
बी.पी.), गुर्दा
(किडनी) आदि के
रोग नहीं
होते।
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