Thursday, 27 June 2013
औषधीय गुणों से भरपूरः ब्रह्मवृक्ष पलाश
औषधीय गुणों से भरपूरः ब्रह्मवृक्ष पलाश
१.जिसकी समिधा यज्ञ
में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष
को आयुर्वेद ने 'ब्रह्मवृक्ष' नाम से गौरवान्विति
किया है। पलाश के पाँचों अंग (पत्ते, फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। यह रसायन
(वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने
वाला व बुद्धिवर्धक भी है।
२.इसके पत्तों से
बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ
प्राप्त होते हैं।
३.इसके पुष्प मधुर व
शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं।
४.पलाश के बीज उत्तम
कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं।
५. इसका गोंद
हड्डियों को मजबूत बनाता है।
६.इसकी जड़ अनेक
नेत्ररोगों में लाभदायी है।
७.पलाश व बेल के
सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से
बुद्धि शुद्ध होती है व बढ़ती भी है।
८.वसंत ऋतु में पलाश
लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग
पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
पलाश के फूलों
द्वारा उपचारः
1.महिलाओं
के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के
पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।
2.मेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का
काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें।
3.रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस
आँखों में डालने से लाभ होता है।
4.आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों
के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।
वीर्यवान बालक की प्राप्ति
के लिएः
1.दूध के साथ प्रतिदिन एक पलाशपुष्प पीसकर दूध में
मिला के गर्भवती माता को पिलायें, इससे बल-वीर्यवान
संतान की प्राप्ति होती है।
पलाश के बीजों द्वारा उपचारः
1.पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया
जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण
सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें । चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल
गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल
जायेंगे।
2.बीज-चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर दाद पर
लगाने से वह मिट जाती है।
3.पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर
बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।
छाल व पत्तों द्वारा उपचारः
1.बालकों की आँत्रवृद्धि (Hernia) में छाल का काढ़ा (25 मि.ली.) बनाकर पिलायें।
2.नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा
योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर
मिश्री मिला के पिलायें।
3.बवासीर में पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में
बनाकर दही के साथ खायें।
पलाश के गोंद द्वारा उपचारः
1.पलाश का 1 से 3
ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की
वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।
2.यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व
संग्रहणी में आराम मिलता है।
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