Wednesday 24 July 2013

पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका

पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका




हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

*
चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।

*
पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।

*
छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।

*
सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।

*
आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।

*
नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।

*
दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।

*
ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।

*
बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

*
तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

*
चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

*
पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।

*
सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक 'संस्कार विधि' में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।

*
दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

* 2500
वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।

*
प्राचीन संस्कृत पुस्तक 'सर्वोदय' में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

*
यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।

*
चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।




1 comment:

  1. For reading health information click here A health Portal
    I am a social worker and health adviser. Do you see my work please click here Health knowledge

    ReplyDelete