Thursday 25 July 2013

उच्च रक्तचाप की आयुर्वेदिक चिकित्सा

उच्च रक्तचाप की आयुर्वेदिक चिकित्सा





वत्तुत: रक्तचाप कोई रोग नहीं है। हर व्यक्ति को हर सयम रक्तचाप रहता है लेकिन जब यह रक्तचाप आवश्यकता से अधिक बढ़ जाता है तभी चिंता का विषय बन जाता है।
हमारा हृदय एक रक्त शोधनशाला है और वही शरीर के सभी अंगों को शुद्ध रक्त की आपूर्ति करता है। हृदय में संकोचन और प्रसारण की एक स्वाभाविक शक्ति है। हृदय के संकोचन और प्रसारण से ही रक्त धमनियों में प्रवाहित होता है। जब रक्तचाप स्वाभाविक से अधिक हो जाता है तो उसे उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर कहते हैं।

रक्तचाप बढ़ने का कारण-

 रक्तचाप बढ़ने का मुख्य कारण धमनियों की दीवारों का मोटा और कड़ा हो जाना है। दीवारों के मोटे हो जाने से रक्त का मार्ग तंग हो  जाता है और उसे आगे ठेलने के लिए हृदय को बहुत जोर लगाना पड़ता है। हृदय को रक्त ठेलने के लिए सामान्य से जितना अधिक जोर लगाना पड़ता है उतना ही रक्तचाप बढ़ता है। धमनियों के मोटे और कठोर होने तथा रक्त का मार्ग तंग  और अवरूद्ध होने का एक प्रमुख कारण वात प्रकोप है। जब प्रदूषित वायु कफ के साथ अपनी प्रबुद्ध गति में धमनी में संचरण करती है तो कफ आदि के अंश वहां जमा हो जाते है, जिससे रक्त का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है और धमनियां कठोर हो जाती हैं। वृद्धा अवस्था में धमनियों का लचीलापन घट जाता है। इसलिए हृदय संकोच के समय फैल नहीं पाता जिससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है।
रक्तचाप का प्रभाव मस्तिष्क पर- रक्तचाप वृद्धि का प्रभाव मस्तिष्क, हृदय और बस्ति पर विशेष पड़ता है। परन्तु लक्षण सबसे पहले मस्तिष्क और हृदय में प्रकट होते हैं। सबसे पहले सिर में चक्कर आते है, आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है, घबराहट व व्याकुलता बढ़ जाती है। व्यक्ति अकारण ही उद्धिग्न और अशांत हो जाता है तथा अपने पर निंयत्रण नहीं रख पाता। मन और मस्तिष्क निर्बल हो जात है और निद्रा नहीं आती है।

सुषुम्ना नाड़ी के सूत्र धमनियों को संकुचित और हृदय को उत्तेजित रखते हैं। इसलिए आवेग प्रधान और विक्षोभशील प्रकृति वाले व्यक्तियों में स्वभावत: रक्तचाप बढ़ने की प्रवृति होती है इसी प्रकार जो व्यक्ति वात प्रकृति के होते हैं और व्यायाम नहीं करते, उनका भी रक्तचाप बढ़ा हुआ रहता है। वृक्कों (गुर्दो) को रक्त कम मिलने या उप वृक्क ग्रंथि में कैंसर-अर्बुद्ध-आघात हो, तो शरीर में जल अधिक रूक जाता है जिससे धमनियां संकुचित हो जाती हैं। और रक्तचाप बढ़ जाता है। स्त्रियों में जब मासिक धर्म बंद हो जाता है तो धमनियां संकुचित हो जाती हैं तब रक्तचाप बढ़ जाता है।
मधुमेह, मेदो वृद्धि, उपदंश, गठिया, वृक्क रोग, आदि रोगों से तथा औषधियों के विषैले प्रभाव में, मदिरा-चाय-कॉफी आदि पदार्थो के अधिक मात्रा में चिरकाल तक सेवन करने में भी रक्तचाप बढ़ जाता है।

सावधानियां-

उच्च रक्तचाप वाले रोगी को न तो ऐसे वातावरण में रहना चाहिए और न ऐसा वातावरण पैदा करना चाहिए जिससे  काम, क्रोध, क्षोभ या ओवश की सृष्टि होती हो। उसे बातचीत और व्यवहार में नरमी लानी चाहिए, जोश में न आकर सहनशीलता से काम लेना चाहिए। अधिक मानसिक श्रम नहीं करना चाहिए। इस बात की भी चिंता नहीं करनी चाहिए कि उसे रक्तचाप का रोग है। रोग मालूम पड़ते ही इस रोग की उपेक्षा न करें। जब तक उससे कोई कष्ट न हो। पूर्ण विश्राम कर ही इसको ठीक करें। नमक का सेवन कम करें, चाय-कॉफी का सेवन कम करें। देर से पचने वाली वस्तुएं भी कम सेवन करनी चाहिएं।
भोजन में प्रोटीन कम हो- भोजन में प्रोटीन और सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए। चावल, दूध, केला, सेब और संतरा खाने से लाभ होता है। प्रतिदिन खुली हवा में घूमना चाहिए। नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। चाय-कॉफी भी कम पीनी चाहिए। यदि शरीर मोटा हो तो वनज कम करना चाहिए।

आंवले का प्रयोग लाभदायक- लाभदायक चिकित्सा के रूप में आंवले का चूर्ण आधी-आधी चम्मच दिन में तीन बार पानी से लेना चाहिए अथवा शंखपुष्पी चुर्ण एक-एक चम्मच दिन में तीन बार पानी से लेना चाहिए अथवा सर्पगंधा पचास ग्राम, मिसरी दो सौ ग्राम चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम पानी से लेनी चाहिए अथवा  ‘‘ब्रह्म रसायन’’ अथवा  ‘‘चन्द्रावलेह’’ के एक-एक चम्मच सुबह व रात में दूध से लेना लाभप्रद है।  

रक्तचाप (उच्च)

(1) सूक्ष्म चूर्ण अचरॊल (सर्पगंधा) का, दो माशे भर खाय।
जल संग लेवे दो समय, रक्तचाप घटि जाय।।
विशेष - चाप संतुलित हो रहे, कर दे औषध बन्द।
अन्य रोगहर योग का, करे विशेष प्रबन्ध।।

(2) तीन मील घूमा करे, प्रात: नंगे पैर।
रक्त चाप होवे नहीं, हृदय रोग से खैर (बचाव)।।

(3) बासी रोटी गेहूं की, भीगो दूध में खाय।
उच्च रक्त के चाप में, शीघ्र लाभ दरसाय।।

(4) माशा चूरण बालछड़ (बड़ी इलायची), ताजा जल से खाय।
रक्त चाप हो उच्च तो, जल्द ठिकाने आय।।

(5) तोला ब्राह्मी पत्र (पत्ता) रस, पीवे सांस-सकार (समय)।
उच्च रक्त के चाप में, जल्दी होय सुधार।।

रक्तचाप की घरेलू चिकित्सा

उच्च रक्तचाप

(1) बड़ी इलायची 200 ग्राम लेकर तवे पर इतनी देर तक सेकें कि जल कर राख हो जाये। इस राख को पीस-छान कर साफ शीशी में भर लें। एक छोटी चम्मच इलायची की राख और 2 चम्मच शहद-इन दोनों को मिलाकर सुबह-शाम खायें। इसके बाद 20-25 मिनट तक चाय या पानी का सेवन न करें। 15 दिन तक लगातार प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप सामान्य हो जायेगा।

(2) प्याज का रस खून में cholesterol की मात्रा को कम करके दिल के दौरे को रोकता है। प्याज नर्वस सिस्टम को मजबूत बनाता है। खून साफ करता है। प्याज का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर, नित्य दो चम्मच की मात्रा में दिन में एक बार लेना रक्तचाप में लाभप्रद है।

(3) किसी भी प्रकार से नीम्बू के रस का प्रयोग करने से रक्त वाहिनियाँ कोमल व लचकदार हो जाती हैं! हृदयाघात (हार्ट अटैक) होने का भय नहीं रहता व रक्तचाप सामान्य बना रहता है!

(4) नीम्बू का रस, शहद व अदरक का रस तीनों एक-एक चम्मच गुनगुने पानी में मिलाकर सप्ताह में २-३ दिन पियें! यह पेट के रोग, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग के लिए एक उत्तम टॉनिक है।

(5) रात को तांबे के बर्तन में पाँव किलो पानी रखें और उसमें असली* रुद्राक्ष के आठ दाने डालकर रख दें । रोजाना सवेरे उषापान के रूप में वह पानी पी जाएँ ।इसके नित्य प्रयोग से तीन माह में हि रक्तचाप कम हो जाएगा । आप उन्ही दानों को तीन माह तक प्रयोग कर सकते हैं हाँ रुद्राक्ष को दो तीन सप्ताह बाद ब्रुश से साफ़ करके धुप में सुखा लें !
* शुद्ध रुद्राक्ष की पहचान यह है कि शुद्ध रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है ।

(6) दौ सौ पचास ग्राम ताज़ी हरी लौकी छिलके सहित पांच सौ ग्राम पानी में प्रेशर कुकर में डालकर आग पर रख दें और एक सीटी बजने पर आग पर से उतार लें । मसलकर छान कर ( बिना इसमें कुछ मिलाएं ) इसे सूप कि तरह गर्म गर्म पी लें । आवश्यकतानुसार प्रात: खाली पेट लगातार तीन चार दिन तक रौजाना एक खुराक लें ।


(7) एक तांबे की कटोरी में १०-१५ ग्राम मैथी दाना रात को पानी में भिगो दें । सुबह मैथी दाना निकालकर वह पानी पी लें । रक्तचाप कि अवस्था में आवश्यक परहेज के साथ यह प्रयोग करने से चाहे रक्तचाप बढ़ा हुआ हो या कम हो सामान्य होने लगेगा । साथ हि इस प्रयोग से मधुमेह तथा मोटापा में भी लाभ होता है ।

(8) उच्च रक्तचाप में रात्री में सोने से पहले बादाम के तेल की पांच पांच बूंदों का नस्य लेने से भी ना केवल रक्तचाप बल्कि सिर के अनेक रोगों में भी लाभ होता है ।






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