★ पैत्तिक विकारों में शीतवीर्य द्रव्यों का एंव कफज विकारों में उष्णवीर्य वाले लेखन द्रव्यों का प्रयोग करना होता है । पंरतु गुरूकृपा से बना ये संतकृपा सूरमा अपने आप में अद्भुत है जो एक साथ पित्त कफ के दोषों का निवारण कर आँखों के विविध रोगों को दूर करके आँखों की दृष्टि को निर्मल सुरक्षित व पुष्ट करता है |
★ इस आधुनिक युग के विविध हानिकारक साधनों जैसे कि कम्प्यूटर, टेलीविजन, मोबाइल, लेपटॉप, एल.ई.डी., चमकदार रोशनी, आँख के श्रृंगार प्रसाधन साथ ही दैनिक आहार-विहार जिसमें फास्ट-फूड, जंग-फूड, बजारू मिर्च मसालेदार भोजन, रात्रि जागरण, चिंता, शोक, क्लेश, क्रोध के कारण आँखो को क्षति होती है |
★ इस रफ्तार से भागते तेज युग में त्वरित लाभ हो आँखों का तेज बरकरार रहे इसी ध्येय से जन समाज की पीडा को स्वयं की पीडा अनुभव करने वाले परम दयालु बापूजी ने इस सूरमे में ऐसी पुष्टिकारक औषधि डलवाई है जिससे लोगों की पीडा दूर हो ।
सुरमा की प्रमुक औषधियाँ व उनके फायदे :
मोती पिष्टी :- वातवाहिनी, रक्तवाहिनी, मासँपेशियो को सबल बनाते हुए नेत्र कोे हानि करने वाले दोषों को हर लेता है ।
प्रवाल पिष्टी :- आँख में बढी तीक्ष्णता, अम्लता, उष्णता को हर कर स्थानीय नाडीयो को बल देता है ।
शुद्ध तुतीया :- कई दिनों तक शास्त्रानुसार परिशुद्ध किया ये दृव्य, मासँ वृद्धि बेल दूषित बाहरी संक्रमण को अपने प्रभावी गुणों से नष्ट करता हैं ।
काली मिर्च :- आँखों को खराब करने वाले पित्त कफ का नाश करता है ।
चमेली की कली :- अपने तिक्त कषाय गुण से दोषों का हरण ।
नीम की कोपल :- अपने विषाणुहर व तिक्त गुण से आँखों का इन्फेकशन व दुषित कफ पित्त का शमन करती है इसी प्रकार से अन्य औषधि भी डाली गई है |
इस प्रकार संतकृपा सुरमा सचमुच में नाम के अनुसार अपने में आँखों को सुरक्षित निरोगी तेजस्वी बनाने की क्षमता रखता है ।
पथ्य :- ऑवला का किसी भी रुप में सेवन, काली किशमीश, गाय का दूध, घृत, मूंग के छिलके वाली दाल ।
अपथ्य :- बाजारू जंग, फास्ट-फूड, दही ।
पालनीय :- रोजाना प्रातः मुखधावन के बाद मुहँ मे ठंडा पानी का कुल्ला भरकर छोटी कटोरी (एूश ुरीहशी) में भी ठंडा पानी लेकर आँख को उसमें डुबाकर आँख पटपटाना, घुमाना ये प्रकिया दोनों आँखों में दो बार करनी है हर बार मुख का पानी भी बदलना यह विशेष लाभ के लिए है ।
उपयोग-विधि : सुरमे का उपयोग करने से पहले सलाई को पूरी तरह स्वच्छ व सूखे कप‹डे से साफ करें । सुरमे का कम-से-कम मात्रा में उपयोग करें । रात को सोते समय इसका एक बार उपयोग करें ।
सावधानियाँ : ११ साल से कम उम्र के बच्चों को सुरमा न लगायें । किसी भी प्रकार के आँखों के ऑपरेशन या लेंस के उपयोग के बाद सुरमे का प्रयोग न करें । इसे साफ और सूखी जगह पर ही रखें ।
नेत्र दीर्घकाल स्वस्थ व सुंदर चमकें तुम्हारे ।
प्राप्ति-स्थान : सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों( Sant Shri Asaram Bapu Ji Ashram ) व श्री योग वेदांत सेवा समितियों के सेवाकेंद्र से इसे प्राप्त किया जा सकता है |
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