फालसा(Asiatic Greevia)
फालसा
स्निग्ध,
मधुर, अम्ल और
तिक्त है।
कच्चे फल का पाक
खट्टा एवं पके
फल का विपाक
मधुर,
शीतवीर्य, वात-पित्तशामक
एवं
रुचिकर्ता
होता है।
फालसे
पके फल स्वाद
में मधुर,
स्वादिष्ट,
पाचन में
हलके,
तृषाशामक,
उलटी मिटाने
वाले, दस्त में
सहायक, हृदय
के लिए
हितकारी है।
फालसा रक्तपित्तनाशक,
वातशामक,
कफहर्ता, पेट
एवं यकृत के
लिए
शक्तिदायक,
वीर्यवर्धक,
दाहनाशक, सूजन
मिटाने वाला,
पौष्टिक,
कामोद्दीपक,
पित्त का ज्वर
मिटाने वाला,
हिचकी एवं
श्वास की
तकलीफ, वीर्य
की कमजोरी एवं
क्षय जैसे
रोगों में लाभकर्ता
है। वह
रक्तविकार को
दूर करके रक्त
की वृद्धि भी
करता है।
आधुनिक
विज्ञान की दृष्टा
से फालसे में
विटामिन सी
एवं केरोटीन तत्त्व
भरपूर मात्रा
में है। गर्मी
के दिनों में
फालसा एक
उत्तम फल है।
फालसा शरीर को
निरोगी एवं
हृष्ट-पुष्ट
बनाता है।
फालसे
के फल के
अन्दर बीज
होता है।
फालसे को बीज
के साथ भी खा
सकते हैं।
शरीर
से किसी भी
मार्ग के द्वारा
होने वाले
रक्तस्राव की
तकलीफ में पके
फालसे के रस
का शरबत बना
कर पीना
लाभकारी है।
फालसे का शरबत
हृदय पोषक
(हार्ट टॉनिक)
है। यह शरबत
स्वादिष्ट
एवं रुचिकर
होता है।
गर्मियों के
दिनों में शरीर
में होने वाले
दाह, जलन तथा
पेट एवं दिमाग
जैसे
महत्त्वपूर्ण
अंगों की
कमजोरी आदि
फालसे के
सेवन
से दूर होती
है। फालसे का
मुरब्बा भी
बनाया जाता
है।
औषधि-प्रयोगः
पेट का
शूलः सिकी
हुई 3 ग्राम
अजवायन में
फालसे का 25 से 30
ग्राम रस
डालकर थोड़ा
सा गर्म करके
पीने से पेट
का शूल मिटता
है।
पित्तविकारः
गर्मी
के दोष,
नेत्रदाह,
मूत्रदाह,
छाती या पेट
में दाह,
खट्टी डकार
आदि की तकलीफ
में फालसे के
रस का शरबत
बनाकर पीना
तथा उष्ण-तीक्ष्ण
खुराक बंद कर
केवल
सात्त्विक खुराक
लेने से
पित्तविकार
मिटते हैं और
अधिक तृषा से
भी राहत मिलती
है।
हृदय की
कमजोरीः फालसे
का रस, नींबू
का रस, 1 चुटकी
सेंधा नमक, 1-2
काली मिर्च
लेकर उसमें
स्वादानुसार
मिश्री
मिलाकर पीने
से हृदय की
कमजोरी में
लाभ होता है।
पेट की
कमजोरीः पके
फालसे के रस
में गुलाब जल
एवं मिश्री
मिलाकर रोज
पीने से पेट
की कमजोरी दूर
होती है एवं उलटी
उदरशूल, उबकाई
आना आदि
तकलीफें दूर
होती हैं एवं
रक्तदोष भी
मिटता है।
दिमाग
की कमजोरीः कुछ
दिनों तक
नाश्ते के
स्थान पर
फालसे का रस उपयुक्त
मात्रा में
पीने से दिमाग
की कमजोरी एवं
सुस्ती दूर
होती है,
फुर्ती और
शक्ति पैदा
होती है।
मूढ़ या
मृत गर्भः कई बार
गर्भवती
महिलाओं के
गर्भाशय में
स्थित गर्भ
मूढ़ या मृत
हो जाता है।
ऐसी अवस्था
में पिण्ड को
जल्दी बाहर
निकालना एवं
माता के
प्राणों की
रक्षा करना आवश्यक
होता है। ऐसी
परिस्थिति
में अन्य कोई
उपाय न हो तो
फालसा के मूल
को पानी में
घिसकर उसका
लेप गर्भवती
महिला की नाभि
के नीचे
पेड़ू, योनि
एवं कमर पर
करने से पिण्ड
जल्दी बाहर आ
जायेगा।
पिण्ड बाहर
आते ही तुरन्त
लेप निकाल
दें, नहीं तो
गर्भाशय बाहर
आने की सम्भावना
रहती है।
श्वास,
हिचकी, कफः कफदोष
से होने वाले
श्वास, सर्दी
तथा हिचकी में
फालसे का रस
थोड़ा गर्म
करके उसमें
थोड़ा अदरक का
रस एवं सेंधा
नमक डालकर
पीने से कफ
बाहर निकल
जाता है तथा
सर्दी, श्वास
की तकलीफ एवं
हिचकी मिट
जाती है।
मूत्रदाहः
25
ग्राम फालसे, 5
ग्राम आँवले
का चूर्ण, 10
ग्राम काली
द्राक्ष, 10
ग्राम खजूर, 50
ग्राम चंदन
चूर्ण, 10 ग्राम
सौंफ का चूर्ण
लें।
सर्वप्रथम
आँवला चूर्ण,
चंदन चूर्ण
एवं सौंफ का
चूर्ण लेकर
मिला लें। फिर
खजूर, द्राक्ष
एवं फालसे को
आधा कूट लें।
रात्रि में इस
सबको पानी में
भिगोकर रख दें।
सुबह 20 ग्राम
मिश्री डालकर
अच्छी तरह से
मिश्रित कर के
छान लें। उसके
2 भाग करके
सुबह-शाम 2 बार
पियें। खाने
में दूध, घी,
रोटी, मक्खन,
फल एवं मिश्री
की चीजें लें।
सभी गरम खुराक
खाना बंद कर
दें। इस
प्रयोग से मूत्र,
गुदा, आँख या
योनि की अथवा
अन्य किसी भी
प्रकार की जलन
मिटती है।
महिलाओं का
श्वेत प्रदर,
अति
मासिकस्राव
होना तथा
पुरुषों का
शुक्रमेह आदि
मिटता है।
दिमाग की
अनावश्यक
गर्मी दूर
होती है।
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