Thursday, 10 January 2013
महाशिवरात्रिः कल्याणमयी रात्रि
'स्कन्द पुराण' के
ब्रह्मोत्तर खंड में आता है कि 'शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है।
उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और दुर्लभ है। लोक में ब्रह्मा आदि देवता
और वसिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं। इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से
अधिक पुण्य होता है।'
'शिव' से तात्पर्य है 'कल्याण' अर्थात् यह रात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है। इस रात्रि में
जागरण करते हुए ॐ.... नमः.... शिवाय... इस
प्रकार, प्लुत जप करें, मशीन
की नाईं जप पूजा न करें, जप में जल्दबाजी न हो। बीच-बीच में आत्मविश्रान्ति मिलती जाय।
इसका बड़ा हितकारी प्रभाव अदभुत लाभ होता है।
शिवपूजा में वस्तुओं का कोई महत्त्व
नहीं है, भावना का महत्त्व है। भावे ही
विद्यते देव.... चाहे जंगल या मरूभूमि में क्यों न हो, वहाँ रेती या मिट्टी के शिवजी बना लिये, उस पर पानी के छींटे मार दिये,
जंगली फूल तोड़कर धर दिये और मुँह से ही नाद बजा दिया तो शिवजी प्रसन्न हो जाते
हैं।
आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर
पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की
जाय।
दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की
जाय। हम मन-ही-मन भावना करें-
ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय निर्मलज्ञानचक्षुषे।
नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये।।
'ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है,
निर्मल ज्ञान ही जिनका नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म है, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है।'
महाशिवरात्रि की रात्रि में ॐ बं, बं.... बीजमंत्र
के सवा लाख जप से गठिया जैसे वायु विकारों से छुटकारा मिलता है।
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