Sunday 20 January 2013
ईख (गन्ना)Cane
आजकल
अधिकांश लोग
मशीन या
ज्यूसर आदि से
निकाला हुआ रस
पीते हैं।
सुश्रुत
संहिता के
अनुसार यंत्र
(मशीन, ज्यूसर
आदि) से
निकाला हुआ रस
भारी,
दाहकारी,
कब्जकारक
होने के साथ
ही (यदि शुद्धतापूर्वक
नहीं निकाला
गया है तो)
संक्रामक कीटाणुओं
से युक्त भी
हो सकता है।
अविदाही
कफकरो
वातपित्त
निवारणः।
वक्त्र
प्रहलादनो
वृष्यो
दंतनिष्पीडितो
रसः।।
सुश्रुत
संहिता के
अनुसार गन्ने
को दाँतों से
चबाकर उसका रस
चूसने पर वह
दाहकारी नहीं
होता और इससे
दाँत मजबूत
होते हैं। अतः
गन्ना चूस कर
खाना चाहिए।
भावप्रकाश
निघण्टु के
अनुसार गन्ना
रक्तपित्त
नामक व्याधि
को नष्ट करने
वाला, बलवर्धक,
वीर्यवर्धक,
कफकारक, पाक
तथा रस में मधुर,
स्निग्ध,
भारी,
मूत्रवर्धक व
शीतल होता है।
ये सब पके हुए
गन्ने के गुण
हैं।
औषधि-प्रयोगः
पथरीः गन्ना
नित्य चूसते
रहने से पथरी
टुकड़े टुकड़े
होकर बाहर
निकल जाती है।
पित्त
की उलटी होने
परः 1
गिलास गन्ने
के रस में 2
चम्मच शहद
मिलाकर पिलाने
से लाभ होता
है।
रक्तातिसारः
एक
कप गन्ने के
रस में आधा कप
अनार का रस
मिलाकर
सुबह-शाम
पिलाने से
रक्तातिसार
मिटता है।
विशेषः यकृत
की कमजोरी
वाले, हिचकी,
रक्तविकार,
नेत्ररोग,
पीलिया, पित्तप्रकोप
व जलीय अंश की
कमी के रोगी
को गन्ना चूसकर
ही सेवन करना
चाहिए। इसके
नियमित सेवन
से शरीर का
दुबलापन दूर
होता है और
पेट की गर्मी व
हृदय की जलन
दूर होती है।
शरीर में
थकावट दूर
होकर तरावट
आती है। पेशाब
की रुकावट व
जलन भी दूर
होती है।
सावधानीः
मधुमेह,
पाचनशक्ति की
मंदता, कफ व
कृमि के
रोगवालों को
गन्ने के रस
का सेवन नहीं
करना चाहिए।
कमजोर मसूढ़ेवाले,
पायरिया व
दाँतों के
रोगियों को
गन्ना चूसकर
सेवन नहीं
करना चाहिए।
एक मुख्य बात
यह है कि
बाजारू
मशीनों
द्वारा
निकाले गये रस
से संक्रामक
रोग होने की
संभावना रहती
है। अतः गन्ने
का रस
निकलवाते समय
शुद्धता का विशेष
ध्यान रखें।
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