लौंग(Cloves)
मलक्का
एवं अंबोय के
देश में लौंग
के झाड़ अधिक
उत्पन्न होते
हैं। लौंग का
उपयोग मसालों
एवं सुगन्धित
पदार्थों में
अधिक होता है।
इसका तेल भी
निकाला जाता
है।
गुणधर्मः
लौंग
लघु, कड़वा,
चक्षुष्य,
रुचिकर,
तीक्ष्ण,
विपाक में
मधुर, पाचक,
स्निग्ध,
अग्निदीपक,
हृद्य (हृदय
को रुचने
वाली), वृष्य
और विशद
(स्वच्छ) है।
यह पित्त, कफ,
आँव, शूल, अफरा,
खाँसी, हिचकी,
पेट की गैस,
विष, तृषा,
पीनस (सूँघने
की शक्ति का
नष्ट होना)
तथा रक्तदोष
का नाश करती
है। लौंग में
मुख, आमाशय एव
आँतों में रहने
वाले सूक्ष्म
कीटाणुओं का
नाश करने एवं
सड़न को रोकने
का गुण है।
औषधि-प्रयोगः
सर्दी
लगने परः लौंग
का काढ़ा
बनाकर मरीज को
पिलाने से लाभ
होता है।
कफ और
खाँसीः मिट्टी
का तवा या तवे
जैसा टुकड़ा
गरम करें। लाल
हो जाने पर
बाहर निकालकर
एक बर्तन में
रखें और उसके ऊपर
सात लौंग
डालकर उन्हें
सेंके। फिर
लौंग को पीसकर
शहद के साथ
लेने से लाभ
होता है।
दाँत का
दर्दः लौंग के
अर्क या पाउडर
को रूई पर
डालकर उस फाहे
को दाँत पर
रखें। इससे
दाँत के दर्द
में लाभ होता
है।
मूर्च्छा
एवं मिर्गी की
शुरुआतः लौंग
को घिसकर उसका
अंजन करने से
लाभ होता है।
रतौंधिः
बकरी
के मूत्र में
लौंग को घिसकर
उसको आँजने से
लाभ होता है।
सिरदर्दः
सिरदर्द
में लौंग का
तेल सिर पर
लगाने से या लौंग
को पीसकर ललाट
पर लेप करने
से राहत मिलती
है।
श्वास
की दुर्गन्धः लौंग
का चूर्ण खाने
से अथवा
दाँतों पर
लगाने से दाँत
मजबूत होते
हैं। मुँह की
दुर्गन्ध, कफ,
लार, थूक के द्वारा
बाहर निकल
जाती है। इससे
श्वास सुगन्धित
निकलती है, कफ
मिट जाता है
और पाचनशक्ति
बढ़ती है।
गर्भिणी
की उलटीः 2 लौंग
को गरम पानी
में भिगोकर वह
पानी पीने से गर्भिणी
की उलटी में
लाभ होता है।
इसकी सलाह
एलौपैथी के
डॉक्टरों
द्वारा भी दी
जाती है।
अग्निमांद्य,
अजीर्ण एवं
हैजाः लौंग का
अष्टमांश
काढ़ा
अर्थात्
आठवाँ भाग जितना
पानी बचे, ऐसा
काढ़ा बनाकर
पिलाने से रोगी
को राहत मिलती
है।
प्यास
या जी
मिचलानाः हैजे
में प्यास
लगने पर या जी
मिचलाने पर 7
लौंग अथवा 2
जायफल अथवा 2
ग्राम
नागरमोथ पानी
में उबालकर
ठंडा करके
रोगी को
पिलाने से लाभ
होता है।
खाँसी,
बुखार, अरुचि,
संग्रहणी एवं
गुल्मः लौंग,
जायफल एवं
लेंडीपीपर 1
भाग, बहेड़ा 3
भाग, काली
मिर्च 3 भाग और
लौंग 16 भाग
लेकर उसका
चूर्ण करें।
उसके बाद 2
ग्राम चूर्ण
में उतनी ही
मिश्री डालकर
खायें। इससे
लाभ होता है।
मूत्रलः
नित्य
125 मि.ग्रा. से 250
मि.ग्रा. लौंग
का चूर्ण लेने
से मूत्रपिंड
से
मूत्रद्वार
तक के मार्ग
की शुद्धि
होती है और
मूत्र खुलकर
आता है।
खाँसी
के लिए
लवंगादि वटीः लौंग,
काली मिर्च,
बहेड़ा – इन
तीनों को समान
मात्रा में
मिला लें। फिर
इन तीनों की
सम्मिलित
मात्रा जितनी
खैर की अंतरछाल
अथवा सफेद
कत्था इसमें
डाल दें। इसके
पश्चात् बबूल
की अंतरछाल के
काढ़े में
घोंटकर तीन
तीन ग्राम वजन
की गोलियाँ
बनायें। रोज
दो तीन बार
एक-एक गोली
मुँह में रखने
से खाँसी में
शीघ्र राहत
मिलती है।
खाँसी
आदि के लिए
लवंगादि
चूर्णः लौंग,
जायफल और
लेंडीपीपर 5
ग्राम, काली
मिर्च 20 ग्राम
और सोंठ 160
ग्राम लेकर
उसका चूर्ण
तैयार करें।
अब चूर्ण के
बराबर मात्रा
में मिश्री मिलायें।
यह चूर्ण
तीव्र खाँसी,
ज्वर, अरुचि, गुल्म,
श्वास,
अग्निमांद्य
एवं संग्रहणी
में उपयोगी
है।
विशेषः लवंगादि
सुगंधी
पदार्थों का
चूर्ण तभी
बनायें जब
जरुरत हो,
अन्यथा पहले
से बनाकर रखने
से इनमें
विद्यमान तेल
उड़ जाता है।
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