सूखे मेवे
में विटामिन
ताजे फलों की
अपेक्षा कम
होते हैं।
बादाम(Almonds)
बादाम गरम,
स्निग्ध, वायु
को दूर करने
वाला, वीर्य
को बढ़ाने
वाला है।
बादाम बलप्रद
एवं पौष्टिक
है किंतु
पित्त एवं कफ
को बढ़ाने
वाला, पचने
में भारी तथा
रक्तपित्त के
विकारवालों के
लिए अच्छा
नहीं है।
औषधि-प्रयोगः
शरीर
पुष्टिः रात्रि
को 4-5 बादाम
पानी में
भिगोकर, सुबह
छिलके
निकालकर पीस
लें फिर दूध
में उबालकर,
उसमें मिश्री
एवं घी डालकर
ठंडा होने पर
पियें। इस
प्रयोग से
शरीर हृष्ट
पुष्ट होता है
एवं दिमाग का
विकास होता
है। पढ़ने
वाले विद्यार्थियों
के लिए तथा
नेत्रज्योति
बढ़ाने के लिए
भी यह एक
उत्तम प्रयोग
है। बच्चों को
2-3 बादाम दी जा
सकती हैं। इस
दूध में
अश्वगंधा
चूर्ण भी डाला
जा सकता है।
बादाम
का तेलः इस तेल
से मालिश करने
से त्वचा का
सौंदर्य खिल
उठता है व
शरीर की
पुष्टि भी
होती है। जिन
युवतियों के
स्तनों के
विकास नहीं
हुआ है उन्हें
रोज इस तेल से
मालिश करनी
चाहिए। नाक
में इस तेल की 3-4
बूँदें डालने
से मानसिक
दुर्बलता दूर
होकर सिरदर्द
मिटता है और
गर्म करके कान
में 3-4 बूँदें
डालने से कान
का बहरापन दूर
होता है।
नोटः पिस्ते
के गुणधर्म
बादाम जैसे ही
हैं।
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अखरोट(Nut)
अखरोट
बादाम के समान
कफ व पित्त
बढ़ाने वाली है।
स्वाद में
मधुर,
स्निग्ध,
शीतल, रुचिकर,
भारी तथा धातु
को पुष्ट करने
वाली है।
औषधि
प्रयोगः
दूध
बढ़ाने के
लिएः गेहूँ
के आटे में
अखरोट का
चूर्ण मिलाकर हलवा
बनाकर खाने से
स्तनपान
कराने वाली
माताओं का दूध
बढ़ता है। इस
दूध में
शतावरी चूर्ण भी
डाला जा सकता
है।
धातुस्रावः
अखरोट
की छाल के
काढ़े में
पुराना गुड़
मिलाकर पीने
से मासिक साफ
आता है और बंद
हुआ मासिक भी
शुरु हो जाता
है।
दाँत
साफ करने
हेतुः अखरोट की
छाल के चूर्ण
को तिल के तेल
में मिलाकर
सावधानीपूर्वक
दाँतों पर
घिसने से दाँत
सफेद होते
हैं।
दंतमंजनः
अखरोट
की छाल को
जलाकर उसका 100
ग्राम चूर्ण,
कंटीला 10
ग्राम, मुलहठी
का चूर्ण 50
ग्राम, कच्ची
फिटकरी का
चूर्ण 5 ग्राम
एवं वायवडिंग
का चूर्ण 10 ग्राम
लें। इस चूर्ण
में सुगन्धित
कपूर मिला
लें। इस मंजन
से दाँतों का
सड़ना रुकता
है एवं दाँतों
से खून निकलता
हो तो बंद हो
जाता है।
अखरोट
का तेलः चेहरे
पर अखरोट के
तेल की मालिश
करने से चेहरे
का लकवा मिटता
है।
इस तेल के
प्रयोग से
कृमि नष्ट
होते हैं।
दिमाग की
कमजोरी, चक्कर
आना आदि दूर
होते हैं।
चश्मा हटाने
के लिए आँखों
के बाहर इस
तेल की मालिश
करें।
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काजू(Cashew nut)
काजू पचने
में हलका होने
के कारण अन्य
सूखे मेवों से
अलग है। यह
स्वाद में
मधुर एवं गुण
में गरम है
अतः इसे
किशमिश के साथ
मिलाकर
खायें। कफ तथा
वातशामक, शरीर
को पुष्ट करने
वाला, पेशाब
साफ लाने
वाला, हृदय के
लिए हितकारी
तथा मानसिक
दुर्बलता को
दूर करने वाला
है।
मात्राः
काजू
गरम होने से 7
से ज्यादा न
खायें। गर्मी
में एवं पित्त
प्रकृतिवालों
को इसका उपयोग
सावधानीपूर्वक
करना चाहिए।
औषधि-प्रयोगः
मानसिक
दुर्बलताः 5-7 काजू
सुबह शहद के
साथ खायें।
बच्चों को 2-3
काजू खिलाने
से उनकी
मानसिक
दुर्बलता दूर
होती है।
वायुः घी में
भुने हुए काजू
पर काली
मिर्च, नमक
डालकर खाने से
पेट की वायु
नष्ट होती है।
काजू का
तेलः यह
तेल खूब
पौष्टिक होता
है। यह कृमि, कोढ़,
शरीर के काले
मस्से, पैर की
बिवाइयों एवं जख्म
में उपयोगी
है।
मात्राः
4 से 5
ग्राम तेल
लिया जा सकता
है।
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अंजीर(Anjeer)
अंजीर की
लाल, काली,
सफेद और पीली –
ये चार प्रकार
की जातियाँ
पायी जाती
हैं। इसके
कच्चे फलों की
सब्जी बनती
है। पके अंजीर
का मुरब्बा
बनता है। अधिक
मात्रा में
अंजीर खाने से
यकृत एवं जठर
को नुकसान
होता है।
बादाम खाने से
अंजीर के
दोषों का शमन
होता है।
गुणधर्मः
पके,
ताजे अंजीर
गुण में शीतल,
स्वाद में
मधुर, स्वादिष्ट
एवं पचने में
भारी होते
हैं। ये वायु
एवं पित्तदोष
का शमन एवं
रक्त की
वृद्धि करते
हैं। ये रस
एवं विपाक में
मधुर एवं
शीतवीर्य होते
हैं। भारी
होने के कारण
कफ, मंदाग्नि
एवं आमवात के
रोगों की
वृद्धि करते
हैं। ये कृमि, हृदयपीड़ा,
रक्तपित्त,
दाह एवं
रक्तविकारनाशक
हैं। ठंडे
होने के कारण
नकसीर फूटने में,
पित्त के
रोगों में एवं
मस्तक के
रोगों में
विशेष
लाभप्रद होते
हैं।
अंजीर में
विटामिन ए
होता है जिससे
वह आँख के कुदरती
गीलेपन को
बनाये रखता
है।
सूखे
अंजीर में
उपर्युक्त
गुणों के
अलावा शरीर को
स्निग्ध करने,
वायु की गति
को ठीक करने एवं
श्वास रोग का
नाश करने के
गुण भी
विद्यमान
होते हैं।
अंजीर के
बादाम एवं
पिस्ता के साथ
खाने से बुद्धि
बढ़ती है और
अखरोट के साथ
खाने से
विष-विकार
नष्ट होता है।
किसी बालक
ने काँच,
पत्थर अथवा
ऐसी अन्य कोई
अखाद्य ठोस
वस्तु निगल ली
हो तो उसे रोज
एक से दो
अंजीर
खिलायें।
इससे वह वस्तु
मल के साथ
बाहर निकल
जायेगी।
अंजीर चबाकर
खाना चाहिए।
सभी सूखे
मेवों में देह
को सबसे
ज्यादा पोषण देने
वाला मेवा
अंजीर है।
इसके अलावा यह
देह की कांति
तथा सौंदर्य
बढ़ाने वाला
है। पसीना उत्पन्न
करता है एवं
गर्मी का शमन
करता है।
मात्राः
2 से 4
अंजीर खाये जा
सकते हैं।
भारी होने से
इन्हें
ज्यादा खाने
पर सर्दी, कफ
एवं मंदाग्नि
हो सकती है।
औषधि-प्रयोगः
रक्त की
शुद्धि व
वृद्धिः 3-4 नग
अंजीर को 200
ग्राम दूध में
उबालकर रोज
पीने से रक्त
की वृद्धि एवं
शुद्धि, दोनों
होती है। इससे
कब्जियत भी
मिटती है।
रक्तस्रावः
कान,
नाक, मुँह आदि
से रक्तस्राव
होता हो तो 5-6
घंटे तक 2 अंजीर
भिगोकर रखें
और पीसकर
उसमें दुर्वा
का 20-25 ग्राम रस
और 10 ग्राम
मिश्री डालकर
सुबह-शाम पियें।
ज्यादा
रक्तस्राव हो
तो खस एवं
धनिया के चूर्ण
को पानी में
पीसकर ललाट पर
एवं हाथ-पैर
के तलवों पर
लेप करें।
इससे लाभ होता
है।
मंदाग्नि
एवं उदररोगः जिनकी
पाचनशक्ति
मंद हो, दूध न
पचता हो
उन्हें 2 से 4
अंजीर रात्रि
में पानी में
भिगोकर सुबह चबाकर
खाने चाहिए
एवं वही पानी
पी लेना चाहिए
कब्जियतः
प्रतिदिन
5 से 6 अंजीर के
टुकड़े करके 250
मि.ली. पानी
में भिगो दें।
सुबह उस पानी
को उबालकर आधा
कर दें और पी
जायें। पीने
के बाद अंजीर
चबाकर खायें
तो थोड़े ही
दिनों में कब्जियत
दूर होकर
पाचनशक्ति
बलवान होगी।
बच्चों के लिए
1 से 3 अंजीर
पर्याप्त
हैं।
आधुनिक
विज्ञान के
मतानुसार
अंजीर बालकों
की कब्जियत
मिटाने के लिए
विशेष उपयोगी
है। कब्जियत
के कारण जब मल
आँतों में
सड़ने लगता
है, तब उसके
जहरीले
तत्त्व रक्त
में मिल जाते
हैं और रक्तवाही
धमनियों में
रुकावट डालते
हैं, जिससे शरीर
के सभी अंगों
में रक्त नहीं
पहुँचता। इसके
फलस्वरूप
शरीर कमजोर हो
जाता है तथा
दिमाग, नेत्र,
हृदय, जठर,
बड़ी आँत आदि
अंगों में रोग
उत्पन्न हो
जाते हैं।
शरीर दुबला-पतला
होकर जवानी
में ही
वृद्धत्व
नज़र आने लगता
है। ऐसी
स्थिति में
अंजीर का
उपयोग अत्यंत
लाभदायी होता
है। यह आँतों
की शुद्धि
करके रक्त बढ़ाता
है एवं रक्त
परिभ्रमण को
सामान्य बनाता
है।
बवासीरः
2 से 4
अंजीर रात को
पानी में
भिगोकर सुबह
खायें और सुबह
भिगोकर शाम को
खायें। इस
प्रकार
प्रतिदिन
खाने से खूनी
बवासीर में
लाभ होता है।
अथवा अंजीर,
काली द्राक्ष
(सूखी), हरड़
एवं मिश्री को
समान मात्रा
में लें। फिर
उन्हें कूटकर
सुपारी जितनी
बड़ी गोली बना
लें।
प्रतिदिन
सुबह-शाम 1-1
गोली का सेवन
करने से भी
लाभ होता है।
बहुमूत्रताः
जिन्हें
बार-बार
ज्यादा
मात्रा में
ठंडी व सफेद
रंग का पेशाब
आता हो, कंठ
सूखता हो,
शरीर दुर्बल
होता जा रहा
हो तो रोज
प्रातः काल 2
से 4 अंजीर
खाने के बाद
ऊपर से 10 से 15
ग्राम काले
तिल चबाकर
खायें। इससे
आराम मिलता है।
मूत्राल्पताः
1 या 2
अंजीर में 1 या 2
ग्राम कलमी
सोडा मिलाकर
प्रतिदिन
सुबह खाने से
मूत्राल्पता
में लाभ होता
है।
श्वास
(गर्मी का दमा)- 6 ग्राम
अंजीर एवं 3
ग्राम गोरख
इमली का चूर्ण
सुबह-शाम खाने
से लाभ होता
है। श्वास के
साथ खाँसी भी
हो तो इसमें 2
ग्राम जीरे का
चूर्ण मिलाकर
लेने से
ज्यादा लाभ
होगा।
कृमिः अंजीर
रात को भिगो
दें, सुबह
खिलायें।
इससे 2-3 दिन में
ही लाभ होता
है।
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चारोली(Charoli)
चारोली
बादाम की
प्रतिनिधि
मानी जाती है।
जहाँ बादाम न
मिल सकें वहाँ
चारोली का
प्रयोग किया
जा सकता है।
चारोली
स्वाद में
मधुर,
स्निग्ध,
भारी, शीतल एवं
हृद्य (हृदय
को रुचने
वाली) है। देह
का रंग सुधारने
वाली,
बलवर्धक,
वायु-दर्दनाशक
एवं शिरःशूल
को मिटाने
वाली है।
औषधि-प्रयोगः
सौंदर्य
वृद्धिः चारोली
को दूध में
पीसकर मुँह पर
लगाने से काले
दाग दूर होकर
त्वचा
कांतिमान
बनती है।
खूनी
दस्तः 5-10 ग्राम
चारोली को
पीसकर दूध के
साथ लेने से
रक्तातिसार
(खूनी दस्त)
में लाभ होता
है।
शीतपित्तः
चारोली
को दूध में
पीसकर
शीतपित्त
(त्वचा पर लाल
चकते) पर
लगायें।
नपुंसकताः
गेहूँ
के आटे के
हलुए में 5-10
चारोली डालकर
खाने से
नपुंसकता में
लाभ होता है।
चारोली
का तेलः बालों
को काला करने
के लिए उपयोगी
है।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
खजूर( khajur )
पकी हुई
खजूर मधुर,
पौष्टिक,
वीर्यवर्धक,
पचने में भारी
होती है। यह
वातयुक्त
पित्त के विकारों
में लाभदायक है।
खारिक के
गुणधर्म खजूर
जैसे ही हैं।
आधुनिक
मतानुसार 100
ग्राम खजूर
में 10.6 मि.ग्रा. लौह
तत्त्व, 600
यूनिट
कैरोटीन, 800
यूनिट कैलोरी
के अलावा
विटामिन बी-1,
फास्फोरस एवं
कैल्शियम भी
पाया जाता है।
मात्राः
एक
दिन में 5 से 10
खजूर ही खानी
चाहिए।
सावधानीः
खजूर
पचने में भारी
और अधिक खाने
पर गर्म पड़ती
है। अतः उसका
उपयोग दूध-घी
अथवा मक्खन के
साथ करना
चाहिए।
पित्त के
रोगियों को
खजूर घी में
सेंककर खानी चाहिए।
शरीर में अधिक
गर्मी होने पर
वैद्य की सलाह
के अनुसार ही
खजूर खावें।
औषधि
प्रयोगः
अरुचिः अदरक,
मिर्च एवं सेंधा
नमक आदि डालकर
बनायी गयी
खजूर की चटनी
खाने से भूख
खुलकर लगती
है। पाचन ठीक
से होता है और
भोजन के बाद
होने वाली गैस
की तकलीफ भी
दूर होती है।
कृशताः गुठली
निकाली हुई 4-5
खजूर को
मक्खन, घी या
दूध के साथ
रोज लेने से
कृशता दूर
होती है, शरीर
में शक्ति आती
है और शरीर की
गर्मी दूर
होती है।
बच्चों को
खजूर न खिलाकर
खजूर को पानी
में पीसकर तरल
करके दिन में 2-3
बार देने से
वे
हृष्ट-पुष्ट
होते हैं।
रक्ताल्पता
(पांडू)- घी
युक्त दूध के
साथ रोज योग्य
मात्रा में
खजूर का उपयोग
करने से खून
की कमी दूर
होती है।
शराब का
नशाः ज्यादा
शराब पिये हुए
व्यक्ति को
पानी में भिगोयी
हुई खजूर
मसलकर पिलानी
चाहिए।
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