Tuesday 1 January 2013

पद्मासन या कमलासन(Padmasana)


पद्मासन या कमलासन(Padmasana)


इस आसन में पैरों का आधार पद्म अर्थात कमल जैसा बनने से इसको पद्मासन या कमलासन कहा जाता है। ध्यान आज्ञाचक्र में अथवा अनाहत चक्र में। श्वास रेचक, कुम्भक, दीर्घ, स्वाभाविक।

विधिः बिछे हुए आसन के ऊपर स्वस्थ होकर बैठें। रेचक करते करते दाहिने पैर को मोड़कर बाँई जंघा पर रखें। बायें पैर को मोड़कर दाहिनी जंघा पर रखें। अथवा पहले बायाँ पैर और बाद में दाहिना पैर भी रख सकते हैं। पैर के तलुवे ऊपर की ओर और एड़ी नाभि के नीचे रहे। घुटने ज़मीन से लगे रहें। सिर, गरदन, छाती, मेरूदण्ड आदि पूरा भाग सीधा और तना हुआ रहे। दोनों हाथ घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रहे। (अँगूठे को तर्जनी अँगुली के नाखून से लगाकर शेष तीन अँगुलियाँ सीधी रखने से ज्ञानमुद्रा बनती है।) अथवा बायें हाथ को गोद में रखें। हथेली ऊपर की और रहे। उसके ऊपर उसी प्रकार दाहिना हाथ रखें। दोनों हाथ की अँगुलियाँ परस्पर लगी रहेंगी। दोनों हाथों को मुट्ठी बाँधकर घुटनों पर भी रख सकते हैं।

रेचक पूरा होने के बाद कुम्भक करें। प्रारंभ में पैर जंघाओँ के ऊपर पैर न रख सकें तो एक ही पैर रखें। पैर में झनझनाहट हो, क्लेश हो तो भी निराश न होकर अभ्यास चालू रखें। अशक्त या रोगी को चाहिए कि वह ज़बरदस्ती पद्मासन में न बैठे। पद्मासन सशक्त एवं निरोगी के लिए है। हर तीसरे दिन समय की अवधि एक मिनट बढ़ाकर एक घण्टे तक पहुँचना चाहिए।
दृष्टि नासाग्र अथवा भ्रूमध्य में स्थिर करें। आँखें बंद, खुली या अर्ध खुली भी रख सकते हैं। शरीर सीधा और स्थिर रखें। दृष्टि को एकाग्र बनायें।
भावना करें कि मूलाधार चक्र में छुपी हुई शक्ति का भण्डार खुल रहा है। निम्न केन्द्र में स्थित चेतना तेज और औज़ के रूप में बदलकर ऊपर की ओर आ रही है। अथवा, अनाहत चक्र (हृदय) में चित्त एकाग्र करके भावना करें कि हृदयरूपी कमल में से सुगन्ध की धाराएँ प्रवाहित हो रही हैं। समग्र शरीर इन धाराओं से सुगन्धित हो रहा है।

लाभः प्राणायाम के अभ्यासपूर्वक यह आसन करने से नाड़ीतंत्र शुद्ध होकर आसन सिद्ध होता है। विशुद्ध नाड़ीतंत्र वाले योगी के विशुद्ध शरीर में रोग की छाया तक नहीं रह सकती और वह स्वेच्छा से शरीर का त्याग कर सकता है।
पद्मासन में बैठने से शरीर की ऐसी स्थिति बनती है जिससे श्वसन तंत्र, ज्ञानतंत्र और रक्ताभिसरणतंत्र सुव्यवस्थित ढंग के कार्य कर सकते हैं। फलतः जीवनशक्ति का विकास होता है। पद्मासन का अभ्यास करने वाले साधक के जीवन में एक विशेष प्रकार की आभा प्रकट होती है। इस आसन के द्वारा योगी, संत, महापुरूष महान हो गये हैं।
पद्मासन के अभ्यास से उत्साह में वृद्धि होती है। स्वभाव में प्रसन्नता बढ़ती है। मुख तेजस्वी बनता है। बुद्धि का अलौकिक विकास होता है। चित्त में आनन्द-उल्लास रहता है। चिन्ता, शोक, दुःख, शारीरिक विकार दब जाते हैं। कुविचार पलायन होकर सुविचार प्रकट होने लगते हैं। पद्मासन के अभ्यास से रजस और तमस के कारण व्यग्र बना हुआ चित्त शान्त होता है। सत्त्वगुण में अत्यंत वृद्धि होती है। प्राणायाम, सात्त्विक मिताहार और सदाचार के साथ पद्मासन का अभ्यास करने से अंतःस्रावी ग्रंथियों को विशुद्ध रक्त मिलता है। फलतः व्यक्ति में कार्यशक्ति बढ़ने से भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास शीघ्र होता है। बौद्धिक-मानसिक कार्य करने वालों के लिए, चिन्तन मनन करने वालों के लिए एव विद्यार्थियों के लिए यह आसन खूब लाभदायक है। चंचल मन को स्थिर करने के लिए एवं वीर्यरक्षा के लिए या आसन अद्वितिय है।
श्रम और कष्ट रहित एक घण्टे तक पद्मासन पर बैठने वाले व्यक्ति का मनोबल खूब बढ़ता है। भाँग, गाँजा, चरस, अफीम, मदिरा, तम्बाकू आदि व्यसनों में फँसे हुए व्यक्ति यदि इन व्यसनों से मुक्त होने की भावना और दृढ़ निश्चय के साथ पद्मासन का अभ्यास करें तो उनके दुर्व्यसन सरलता से और सदा के लिए छूट जाते हैं। चोरी, जुआ, व्यभिचार या हस्तदोष की बुरी आदत वाले युवक-युवतियाँ भी इस आसन के द्वारा उन सब कुसंस्कारों से मुक्त हो सकते हैं।
कुष्ठ, रक्तपित्त, पक्षाघात, मलावरोध से पैदा हुए रोग, क्षय, दमा, हिस्टीरिया, धातुक्षय, कैन्सर, उदरकृमि, त्वचा के रोग, वात-कफ प्रकोप, नपुंसकत्व, वन्धव्य आदि रोग पद्मासन के अभ्यास से नष्ट हो जाते हैं। अनिद्रा के रोग के लिए यह आसन रामबाण इलाज है। इससे शारीरिक मोटापन कम होता है। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए यह आसन सर्वोत्तम है।
पद्मासन में बैठकर अश्विनी मुद्रा करने अर्थात गुदाद्वार का बार-बार संकोच प्रसार करने से अपानवायु सुषुम्ना में प्रविष्ट होता है। इससे काम विकार पर जय प्राप्त होने लगती है। गुह्योन्द्रिय को भीतर की ओर सिकोड़ने से अर्थात योनिमुद्रा या वज्रोली करने से वीर्य उर्ध्वगामी होता है। पद्मासन में बैठकर उड्डीयान बन्ध, जालंधर बन्ध तथा कुम्भक करके छाती एवं पेट को फुलाने कि क्रिया करने से वक्षशुद्धि एवं कण्ठशुद्धि होती है। फलतः भूख खुलती है, भोजन सरलता से पचता है, जल्दी थकान नहीं होती। स्मरणशक्ति एवं आत्मबल में वृद्धि होती है।
यम-नियमपूर्वक लम्बे समय तक पद्मासन का अभ्यास करने से उष्णता प्रकट होकर मूलाधार चक्र में आन्दोलन उत्पन्न होते हैं। कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने की भूमिका बनती है। जब यह शक्ति जागृत होती है तब इस सरल दिखने वाले पद्मासन की वास्तविक महिमा का पता चलता है। घेरण्ड, शाण्डिल्य तथा अन्य कई ऋषियों ने इस आसन की महिमा गायी है। ध्यान लगाने के लिए यह आसन खूब लाभदायक है।
इदं पद्मासनं प्रोक्तं सर्वव्याधिविनाशम्।
दुर्लभं येन केनापि धीमता लभ्यते भुवि।।
इस प्रकार सर्व व्याधियों को विनष्ट करने वाले पद्मासन का वर्णन किया। यह दुर्लभ आसन किसी विरले बुद्धिमान पुरूष को ही प्राप्त होता है।
(हठयोगप्रदीपिका, प्रथमोपदेश)












0 comments:

Post a Comment