Sunday, 20 January 2013
पपीता(Papaya)
पपीता
फरवरी-मार्च
एवं मई से
अक्तूबर तक के
महीनों में
बहुतायत से
पाया
जानेवाला फल
है।
कच्चे
पपीते के दूध
में पेपेइन
नामक पाचक रस (Enzymes)
होता है। ऐसा
आज के
वैज्ञानिक
कहते हैं। किंतु
कच्चे पपीते
का दूध इतना
अधिक गर्म
होता है कि
अगर उसे
गर्भवती
स्त्री खाये
तो उसको गर्भस्राव
की संभावना
रहती है और
ब्रह्मचारी
खाये तो
वीर्यनाश की
संभावना रहती
है।
पके
हुए पपीते
स्वाद में
मधुर,
रुचिकारक,
पित्तदोषनाशक,
पचने में
भारी, गुण में
गरम,
स्निग्धतावर्धक,
दस्त साफ लाने
वाले,
वीर्यवर्धक,
हृदय के लिए
हितकारी,
वायुदोषनाशक,
मूत्र साफ
लानेवाले तथा
पागलपन,
यकृतवृद्धि,
तिल्लीवृद्धि,
अग्निमांद्य,
आँतों के कृमि
एवं उच्च रक्तचाप
आदि रोगों को
मिटाने में
मददरूप होते
हैं।
आधुनिक
विज्ञान के
मतानुसार
पपीते में
विटामिन ए
पर्याप्त
मात्रा में
होता है। इसका
सेवन शारीरिक
वृद्धि एवं
आरोग्यता की
रक्षा करता
है।
पके
हुए पपीते में
विटामिन सी की
भी अच्छी मात्रा
होती है। इसके
सेवन से सूख
रोग (स्कर्वी)
मिटता है।
बवासीर,
कब्जियत,
क्षयरोग,
कैंसर, अल्सर,
अम्लपित्त,
मासिकस्राव
की अनियमितता,
मधुमेह,
अस्थि-क्षय (Bone
T.B.)
आदि रोगों में
इसके सेवन से
लाभ होता है।
लिटन
बर्नार्ड
नामक एक
डॉक्टर का
मतव्य है कि प्रतिजैविक
(एन्टीबायोटिक)
दवाएँ लेने से
आँतों में
रहने वाले
शरीर के मित्र
जीवाणु नष्ट
हो जाते हैं,
जबकि पपीते का
रस लेने से उन
लाभकर्ता
जीवाणुओं की
पुनः वृद्धि
होती है।
पपीते
को शहद के साथ
खाने से
पोटैशियम तथा
विटामिन ए, बी,
सी की कमी दूर
होती है।
पपीता
खाने के बाद
अजवाइन चबाने
अथवा उसका चूर्ण
लेने से
फोड़े-फुंसी,
पसीने की
दुर्गन्ध,
अजीर्ण के
दस्त एवं पेट
के कृमि आदि
का नाश होता
है। इससे शरीर
निरोगी, पुष्ट
एवं फुर्तीला
बनता है।
औषधि-प्रयोगः
बालकों
का
अल्पविकासः नाटे,
अविकसित एवं
दुबले-पतले
बालकों को रोज
उचित मात्रा
में पका हुआ
पपीता खिलाने
से उनकी लम्बाई
बढ़ती है,
शरीर मजबूत
एवं तंदरुस्त
बनता है।
मंदाग्नि,
अजीर्णः रोज
सुबह खाली पेट
पपीते की फाँक
पर नींबू, नमक
एवं काली
मिर्च अथवा
संतकृपा
चूर्ण डालकर खाने
से मंदाग्नि,
अरुचि तथा
अजीर्ण मिटता
है।
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