Sunday, 20 January 2013
बेर(Plum)
सर्वपरिचित
तथा मध्यम
वर्ग के
द्वारा भी प्रयोग
में लाया जा
सकने वाला फल
है बेर।
यह
पुष्टिदायक
फल है, किंतु
उचित मात्रा
में ही इसका
सेवन करना
चाहिए। अधिक
बेर खाने से
खाँसी होती
है। कभी भी
कच्चे बेर
नहीं खाने
चाहिए।
चर्मरोगवाले
व्यक्ति बेर न
खायें।
बड़े
बेर (पेबंदी
बेर)- खजूर
के आकार,
बड़े-बड़े,
लम्बे-गोल बेर
ज्यादातर
गुजरात,
कश्मीर एवं
पश्चिमोत्तर
प्रदेशों में
पाये जाते
हैं। ये स्वाद
में मीठे,
पचने में
भारी, ठंडे,
मांसवर्धक, मलभेदक,
श्रमहर, हृदय
के लिए हितकर,
तृषाशामक, दाहशामक,
शुक्रवर्धक
तथा
क्षयनिवारक
होते हैं। ये
बवासीर, दस्त
एवं गर्मी की
खाँसी में भी
उपयोगी होते
हैं।
मीठे
मध्यम बेरः ये मध्यम
आकार के एवं
स्वाद में
मीठे होते हैं
तथा
मार्च महीने
में अधिक पाये
जाते हैं। ये
गुण में ठंडे,
मल को रोकने
वाले, भारी,
वीर्यवर्धक
एवं
पुष्टिकारक
होते हैं। ये
पित्त, दाह,
रक्तविकार,
क्षय एवं तृषा
में लाभदायक
होते हैं,
किन्तु गुणों
में बड़े बेर
से कुछ कम। ये
कफकारक भी
होते हैं।
खट्टे
मीठे मध्यम
बेरः ये
आकार में
मीठे-मध्यम
बेर से कुछ
छोटे, कच्चे
होने पर स्वाद
में खट्टे
कसैले एवं पक
जाने पर
खट्टे-मीठे
होते हैं।
इसकी झाड़ी
कँटीली होती
है। ये बेर
मलावरोधक,
रुचिवर्धक,
वायुनाशक,
पित्त एवं
कफकारक, गरम,
भारी, स्निग्ध
एवं अधिक खाने
पर दाह
उत्पन्न करने
वाले होते
हैं।
छोटे
बेर (झड़बेर)- चने के
आकार के लाल
बेर स्वाद में
खट्टे मीठे, कसैले,
ठंडे, भूख तथा
पाचन वर्धक,
रुचिकर्ता, वायु
एवं
पित्तशामक
होते हैं। ये
अक्टूबर-नवम्बर
महीनों में
ज्यादा होते
हैं।
सूखे
बेरः सभी
प्रकार के
सूखे बेर पचने
में हलके, भूख
बढ़ाने वाले,
कफ-वायु-तृषा-पित्त
व थकान का नाश
करने वाले तथा
वायु की गति
को ठीक करने
वाले होते
हैं।
औषधि-प्रयोगः
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