Sunday, 17 February 2013
गर्भवती स्त्री के लिए पथ्य आहार-विहार
गर्भवती स्त्री के लिए पथ्य आहार-विहार
गर्भधारण होने के पश्चात्
ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना चाहिए। सत्साहित्य का श्रवण एवं अध्ययन, सत्पुरुषों, आश्रमों एवं देवमंदिरों के दर्शन
करना चाहिए एवं मन प्रफुल्लित रहे – ऐसी सत्प्रवृत्तियों में रत रहना
चाहिए।
गर्भधारण के पश्चात् प्रथम मास
बिना औषधि का ठंडा दूध सुबह-शाम पियें। आहार प्रकृति के अनुकूल एवं हितकर करें।
दूध भात उत्तम आहार है। दूसरे मास में मधुर औषधि जैसे कि जीवंति, मुलहठी, मेदा, महामेदा, सालम, मुसलीकंद आदि से संस्कारित सिद्ध
दूध योग्य मात्रा में पियें तथा आहार हितकर एवं सुपाच्य ले तथा आहार हितकर एवं
सुपाच्य लें।
तीसरे मास में दूध में शहद एवं घी
(विमिश्रण) डालकर पिलायें तथा हितकर एवं सुपाच्य आहार दें।
चौथे मास में दूध में एक तोला मलाई
डालकर पिलायें तथा हितकर एवं सुपाच्य आहार दें।
पाँचवें मास में दूध एवं घी मिलाकर
पिलायें।
छठे एवं सातवें मास में दूसरे
महीने की तरह औषधियों से सिद्ध किया गया दूध दें एवं घी खिलायें।
आठवें एवं नवें मास में चावल को
दूध में पकाकर, घी डालकर सुबह-शाम दो वक्त खिलायें।
इसके अलावा वातनाशक द्रव्यों से
सिद्ध तेल के द्वारा कटि से जंघाओं तक मालिश करनी चाहिए। पुराने मल की शुद्धि के
लिए निरुद बस्ति एवं अनुवासन बस्ति का प्रयोग करना चाहिए। नवें महीने में उसी तेल
का रूई का फाहा योनि में रखना चाहिए।
शरीर में रक्त बनाने के लिए प्राणियों के खून से बनी
ऐलोपैथिक केप्सूल अथवा सिरप लेने के स्थान पर सुवर्णमालती, रजतमालती एवं च्यवनप्राश का रोज
सेवन करना चाहिए एवं दशमूल का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment