Tuesday, 19 February 2013
स्वेदन चिकित्सा(सेंक) से होने वाले अद्भुत लाभ
स्वेदन चिकित्सा(सेंक) से होने वाले अद्भुत लाभ
वायु एवं कफजन्य रोगों में स्वेदन
चिकित्सा अत्यंत लाभकारी होती है। भिन्न-भिन्न प्रकार की स्वेदन चिकित्सा के
द्वारा शरीर के विजातीय द्रव्य बाहर निकल कर तथा सेंक के द्वारा रक्त परिभ्रमण की
गति में सुधार होकर शरीर को स्वस्थ एवं नीरोग होने में मदद मिलती है।
सावधानीः सगर्भा स्त्रियों पर, नित्य पाचन औषधि खानेवालों पर, मद्यपान करनेवालों पर, रक्तस्राव होने वालों पर, पित्तप्रधान व्यक्ति पर, अतिसार, मधुमेह के रोगी पर, गुदा पकने पर, जले हुए पर, विषपान किये हुए, खूब थके हुए, बेहोश, अतिस्थूल, भूखे प्यासे, क्रोधित या शोकयुक्त व्यक्ति पर, पीलिया, वात रक्त (Laprasy) के रोगी पर, घायल एवं दुर्बल रोगी पर स्वेदन
चिकित्सा न करें।
वाष्प स्वेद (Steam Bath)
इसमें सिर बाहर रहे एवं नीचे से
ऊपर भाप प्रसारित हो सके वैसी छिद्रोंवाली एक पेटी बनायी जाती है। वायुनाशक
द्रव्यों जैसे कि वरूण, निर्गुण्डी, गिलोय, अरण्डी, सहजना, मूली के बीज, सरसों, अडूसा, बाँस के पत्ते, करंज के पत्ते, ऑक के पत्ते, अंबाटी के पत्ते, कटशरैया के पत्ते, मालती के पत्ते, तुलसी के पत्ते आदि कुकर जैसे
बर्तन में उबाले हुए पानी के वाष्प को नली द्वारा उस पेटी में प्रवाहित किया जाता
है। अच्छी तरह से मालिश करके मरीज का सिर बाहर रहे इस प्रकार से सुलाया जाता है।
इस समय यदि जरूरत पड़े तो हृदय एवं आँखों पर ठण्डी पट्टियाँ रखी जा सकती हैं।
अच्छी तरह पसीना निकल जाने पर मरीज को बाहर निकाला जाता है।
बाहर निकालकर मरीज को एकदम ठण्डे
या खुले वातावरण में नहीं जाना चाहिए। 10-15 मिनट पश्चात् शरीर का तापमान सामान्य
होने पर ही बाहर जायें।
सोने की जगह कुर्सी पर बैठकर स्वेदन
क्रिया की जा सके ऐसी पेटी भी आती है। सामान्य छोटे बाथरूम में भी वाष्प प्रसारित
करके भी वाष्पस्वेद का लाभ लिया जा सकता है।
प्रस्तर स्वेद
लकवे में, शरीर के जकड़ने पर एवं कमर के
जकड़ने में वायुनाशक वनस्पति के पत्तों को खटिया के ऊपर बिछाकर नीचे सिगड़ी रखकर, गर्म करके, पत्तों पर कंबल ओढ़कर सोकर सेंक
का लाभ लिया जा सकता है।
नाड़ी स्वेद
घुटने की सूजन, कमर के दर्द, मुँह के लकवे, सायटिका के दर्द, मूढ़मार आदि में वायुनाशक
द्रव्यों को कुकर जैसे साधन में उबालकर लंबी प्लास्टिक की नली में दूसरी ओर फुहारा
फिट करके प्रभावित अंग पर स्थानिक वाष्प स्नान दिया जा सकता है।
अवगाह स्वेद (Tub Bath)
मूत्रकृच्छ, पथरी, बवासीर, मस्से, गुदाशूल, कटिशूल, प्रोस्टेट ग्रन्थि की सूजन आदि
में वायुनाशक द्रव्य डालकर गर्म किये पानी को टब जैसे बर्तन में भरकर मरीज का कमर
तक का भाग उस पानी में डुबा रहे इस प्रकार बैठने से लाभ होता है।
पिंड स्वेद या संकर स्वेद
कफ अथवा मेदप्रधान वेदनायुक्त अंग
पर या गाँठवाले अंग पर धूल, रेती, गाय के गोबर या धान की भूसी को
गर्म करके सेंक देने से लाभ होता है।
आमवात में बाजरी की मोटी-मोटी रोटी
बनाकर एक ओर सेंककर एवं दूसरी ओर हल्दी-तेल लगाकर जोड़ों पर बाँधने से लाभ होता
है।
मूठमार या मोच में प्रभावित अंग पर
खेखसा को पीसकर हल्दी, नमक, तेल, छाछ डालकर गर्म करके (गूँथे हुए
आटे जैसा) पिंडा बनाकर बाँधने से लाभ होता है।
परिषेक स्वेद
पित्तयुक्त वात या कफ व्याधि में
अथवा मूढ़मार से प्रभावित अंगों पर वायुनाशक द्रव्य डालकर उबाले गये, सहनयोग्य गर्म पानी की ऊँची धार
डालकर भी चिकित्सा की जाती है।
विभिन्न प्रकार के स्वेदन एवं गर्म
तथा ठण्डे पानी की थैली या पट्टियों द्वारा सेंक करने के भिन्न-भिन्न प्रयोगों से
सर्दी-जुकाम-श्वास-दम आदि कफजन्य रोगों में, कान या गले के शूल, सिरदर्द, पेटदर्द, सूजन, हाथ-पैर के सुन्न होने, जड़ता आदि में राहत मिलती है।
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