Tuesday 19 February 2013

सूर्य किरण चिकित्सा



सूर्य किरण चिकित्सा



सूर्यकिरणों में सात रंग होते हैं जो कि शरीर के विभिन्न रोगों के उपचार में सहायक हैं। सूर्यकिरणों में शक्ति का अथाह भण्डार छिपा हुआ है इसीलिए बीमारी के समय सूर्य की किरणों में बैठकर पशु अपनी बीमारी जल्दी मिटा लेते हैं, जबकि मनुष्य कृत्रिम दवाओं की गुलामी करके अपना स्वास्थ्य और अधिक बिगाड़ लेता है। यदि वह चाहे तो सूर्यकिरण जैसी प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से शीघ्र ही आरोग्यलाभ कर सकता है।

इसीलिए प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में सूर्यपूजा होती आ रही है। आरोग्यप्रदायक होने के साथ ही सूर्य सबके जीवन-रक्षक भी हैं इसीलिए उन्हें भगवान की संज्ञा दी गई है। सूर्य को सप्तरश्मि कहा गया है जिससे पता चलता है कि भारतवासियों का ज्ञान कितना उच्च कोटि का था। वैज्ञानिकों ने तो अब स्वीकारा लेकिन हमारे ऋषि-मुनियों ने तो आदि काल से ही भगवान सूर्य को जल अर्पण करके नमस्कार का विधान रचा है तथा आज भी इसका जनमानस में प्रचार-प्रसार हो रहा है।

प्रातःकाल उदित भगवान भास्कर के सम्मुख खड़े होकर एक शुद्ध पात्र में जल भरकर दोनों हाथ से पात्र को ऊँचा उठाकर जब सूर्य भगवान को जल अर्पण किया जाता है तब उस जलधारा को पार करती हुई सूर्यकिरणें हमारे सिर से पैरों तक पड़ती हैं। इस क्रिया से हमें स्वतः ही सूर्यकिरणयुक्त जलचिकित्सा का लाभ मिल जाता है।

हमारे ऋषियों ने मंत्र एवं व्यायाम सहित सूर्यनमस्कार की एक प्रणाली विकसित की है जिसमें सूर्योपासना के साथ-साथ आसन की क्रियाएँ भी हो जाती हैं। सूर्यनमस्कार के संबंध में ऐसी मान्यता भी प्रचलित है कि जिसने यह विधि कर ली उसने सारे आसन कर लिए। सूर्यनमस्कार की प्रत्येक मुद्रा में निम्नलिखित एक-एक मंत्र का उच्चारण करना चाहिएः
ॐ मित्राय नमः। ॐ रवये नमः। ॐ मरीचये नमः। ॐ सूर्याय नमः। ॐ आदित्याय नमः। ॐ भानवे नमः। ॐ सवित्रे नमः। ॐ खगाय नमः। ॐ अर्काय नमः। ॐ पूष्णे नमः। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः। ॐ भास्कराय नमः। ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः।

सूर्यनमस्कार के बाद पुनः आँखें मूँदकर, सूर्यनारायण का प्रकाश नाभि पर पड़े इस प्रकार खड़े होकर ऐसा संकल्प करें- "सूर्य देवता का नीलवर्ण मेरी नाभि में प्रवेश कर रहा है। मेरे शरीर में सूर्यनारायण की तेजोमय शक्ति का संचार हो रहा है। आरोग्यप्रदाता भगवान की भास्कर की जीवनपोषक रश्मियों से मेरे रोम-रोम में रोगप्रतिकारक क्षमता का अतुलित संचार हो रहा है।"
प्रतिदिन सूर्यस्नान, सूर्यनमस्कार तथा सूर्योपासना करने वाले का जीवन भी भगवान भास्कर के प्रचण्ड तेज के समुज्जवल तथा तमसानाशक बनता है।

सूर्यरश्मियों के रंग

सूर्य की सात किरणों में नीला, लाल एवं हरा रंग प्रमुख है। बाकी के जामुनी, आसमानी, पीला, नारंगी ये चार रंग ऊपर के तीन रंगों का ही मिश्रण है।
नीला-जामुनी-आसमानीः ठंडक एवं शान्ति देता है।
लाल-पीला-नारंगीः गर्मी एवं उत्तेजना देता है।
हरा रंगः ऊपर के रंगों के बीच संतुलन बनाये रखता है एवं रक्तशोधक है।


सूर्य-किरण प्रयोग के माध्यम

पानीः जिस रंग की दवा तैयार करनी हो उस रंग की बॉटल को अच्छी तरह धोकर पौना भाग पानी से भरकर धूप मे रख दें। पानी के आरपार धूप जायेगी एवं आठ घण्टे में पानी तैयार हो जायेगा। यदि इस पानी को दो-तीन दिन धूप में रखा जाये तो उसमें अधिक मात्रा में औषध तत्व आ जाने के कारण पानी अधिक गुणकारी हो जायेगा।आपत्तिकाल में दो घण्टे धूप में रखा हुआ पानी उपयोग में लाया जा सकता है।
सावधानीः दो अलग-अलग रंग की बॉटल को दूर-दूर रखें जिससे एक दूसरे पर छाया न पड़े।

शक्करः दवा को यदि बाहर भेजना हो तो बॉटल में शक्कर भरकर धूप में तीस चालीस दिन रखें एवं रोज हिलायें जिससे अंदर-बाहर के सब कण तैयार हो जायें। बॉटल एकदम सूखी होनी चाहिए।

तेलः मालिश करने हेतु नीली बॉटल में सरसों का तेल ठंडक पहुँचाने हेतु एवं लाल बॉटल में तिल का तेल गर्मी पहुँचाने हेतु तैयार करें।
तीस-चालीस दिन धूप में रखने से एवं रोज हिलाते रहने से तथा ऊपर की मिट्टी साफ करते रहने से तेल तैयार हो जायेगा। जितने अधिक दिन बॉटल धूप में रहेगी दवा उतनी ही अधिक ताकतवाली बनेगी।

ग्लिसरीनः नीले रंग की बॉटल में ग्लिसरीन डालकर धूप में तीस-चालीस दिन रखें। गले के रोगों, छालों एवं मसूढ़ों पर जहाँ तेल का उपयोग नहीं किया जा सकता वहाँ इसका उपयोग करें।

कुछ आवश्यक बातें

आपत्तिकाल में सात दिन तक चार्ज की हुई शक्कर, तेल अथवा ग्लिसरीन का उपयोग किया जा सकता है। आँखों के लिए हरी बॉटल में पानी अथवा गुलाबजल तैयार किया जा सकता है।

बॉटल को रात-दिन छत पर पड़ी रहने दें। रात्रि को चंद्र की किरणें बॉटल पर पड़ने से हानि नहीं होती।

नीले एवं हरे रंग की बॉटल तो मिल जाती है। लाल बॉटल के लिए नारंगी अथवा कत्थई रंग की बॉटल का उपयोग किया जा सकता है।

पीने के लिए हमेशा नारंगी रंग की बॉटल का ही पानी दें। मालिश के लिए लाल बॉटल न मिले तो नारंगी बॉटल चलेगी।

यदि कोई भी रंग की बॉटल न मिले तो सफेद बॉटल पर दो पर्तोंवाला पारदर्शी पेपर (जिस कलर का चाहिए) लपेटकर धागे से बाँध दें एवं कलर उड़ने पर कागज बदलते रहें।





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