Sunday, 17 February 2013
पुण्यमय दर्शन किसका ?
'महाभारत'
भगवान व्यास जी कहते हैं-
यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।
'हे
युधिष्ठिर !
आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है,
उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका
पूरा वर्ष शोक में व्यतीत होता है।'
दीपावली के दिन, नूतन
वर्ष के दिन मंगलमय चीजों का दर्शन करना भी शुभ माना गया है,
पुण्य-प्रदायक माना गया है। जैसेः
उत्तम
ब्राह्मण,
तीर्थ, वैष्णव,
देव-प्रतिमा,
सूर्यदेव, सती
स्त्री, संन्यासी,
यति,
ब्रह्मचारी,
गौ, अग्नि,
गुरु, गजराज, सिंह,
श्वेत अश्व,
शुक, कोकिल,
खंजरीट (खंजन),
हंस, मोर,
नीलकंठ, शंख
पक्षी, बछड़े
सहित गाय,
पीपल वृक्ष,
पति-पुत्रावली नारी,
तीर्थयात्री,
दीपक,
सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा, माणिक्य, तुलसी, श्वेत पुष्प, फ़ल, श्वेत धान्य,
घी, दही, शहद,
भरा हुआ घड़ा,
लावा, दर्पण,
जल, श्वेत
पुष्पों की माला, गोरोचन,
कपूर, चाँदी, तालाब,
फूलों से भरी हुई वाटिका,
शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा,
चंदन,
कस्तूरी,
कुंकुम,
पताका, अक्षयवट
(प्रयाग तथा गया स्थित वटवृक्ष) देववृक्ष (गूगल), देवालय,
देवसंबंधी जलाशय, देवता
के आश्रित भक्त, देववट,
सुगंधित वायु शंख, दुंदुभि,
सीपी, मूँगा,
स्फटिक मणि,
कुश की जड़,
गंगाजी मिट्टी,
कुश, ताँबा,
पुराण की पुस्तक, शुद्ध
और बीजमंत्रसहित भगवान विष्णु का यंत्र,
चिकनी दूब,
रत्न, तपस्वी,
सिद्ध मंत्र,
समुद्र,
कृष्णसार (काला) मृग,
यज्ञ, महान
उत्सव,
गोमूत्र,
गोबर,
गोदुग्ध,
गोधूलि, गौशाला,
गोखुर, पकी
हुई फसल से भरा खेत,
सुंदर (सदाचारी) पद्मिनी,
सुंदर वेष,
वस्त्र एवं दिव्य आभूषणों से विभूषित सौभाग्यवती स्त्री, क्षेमकरी,
गंध, दूर्वा,
चावल औऱ अक्षत (अखंड चावल),
सिद्धान्न (पकाया हुआ अन्न) और उत्तम अन्न – इन
सबके दर्शन से पुण्य लाभ होता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्यायः 76 एवं 78)
लेकिन जिनके हृदय में परमात्मा प्रकट हुए हैं, ऐसे साक्षात् कोई लीलाशाहजी बापू जैसे, नरसिंह मेहता जैसे संत अगर मिल जायें तो समझ लेना चाहिए कि भगवान
की हम पर अति-अति विशेष, महाविशेष कृपा है।
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गौ
और ब्राह्मण की हत्या करने वाले, कृतघ्न,
कुटिल,
देवमूर्तिनाशक,
माता-पिता के हत्यारे,
पापी,
विश्वासघाती,
झूठी गवाही देने वाले, अतिथि
के साथ छल करने वाले,
देवता तथा ब्राह्मण के धन का अपहरण करने वाले,
पीपल का पेड़ काटने वाले,
दुष्ट, भगवान
शिव और भगवान विष्णु की निंदा करने वाले, दीक्षारहित,
आचारहीन,
संध्यारहित द्विज, देवता
के चढ़ावे पर गुजारा करने वाले और बैल जोतने वाले ब्राह्मण को देखने से पाप लगता
है। पति-पुत्र से रहित, कटी
नाकवाली,
देवता और ब्राह्मण की निंदा करने वाली, पतिभक्तिहीना,
विष्णुभक्तिशून्या तथा व्यभिचारिणी स्त्री के दर्शन से भी पाप लगता है। सदा क्रोधी, जारज
(परपुरुष से उत्पन्न संतान),
चोर,
मिथ्यावादी,
शरणागत को यातना देने वाले,
मांस चुराने वाले, सूदखोर
द्विज और अगम्या स्त्री के साथ समागम करने वाले दुष्ट नराधम को भी देखने से पाप
लगता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंडः अध्याय 76 एवं 78)
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