Friday 1 February 2013
आयुर्वेद की सलाह के बिना शल्यक्रिया कभी न करवायें
डॉक्टरों
के बारे में
दो साधकों के
कटु अनुभव यहाँ
प्रस्तुत हैं-
'मेरी
पत्नी
गर्भवती थी।
उसे उलटी,
उबकाई एवं पेट
में दर्द होने
लगा तो डॉक्टर
को दिखाया।
डॉक्टर ने
सोनोग्राफी
करके हमें
कहाः 'अभी
तुरंत
ऑपरेशन(शल्यक्रिया)
करवाओ। गर्भ टयूब
में है और
टयूब फट
जायेगी तो माँ
और बच्चा, दोनों
की जान खतरे
में पड़
जायेगी।'
हम सूरत
आश्रम में
आये। 'साँई
श्री
लीलाशाहजी
उपचार
केन्द्र' में
वैद्यराज जी
के समक्ष सारी
परिस्थिति बतायी।
उन्होंने
उपचार शुरु
किया। केवल
गैस एवं मल
मूत्र के रुके
रहने के कारण
पेट में दर्द था।
टबबाथ, दवा
एवं
अर्कपत्र-स्वेदन
देते ही 10-15 मिनट
में दर्द कम
हो गया एवं
दो-तीन घंटे
में सब ठीक हो
गया। दूसरे
दिन सोनोग्राफी
की रिपोर्ट
देखकर
वैद्यराज ने
कहाः 'इस
रिपोर्ट में
तो गर्भ टयूब
में है ऐसा
कुछ लिखा ही
नहीं है।'
हमने
बताया कि
डॉक्टर साहब
ने स्वयं ऐसा
कहा था। आज भी
मेरी पत्नी का
स्वास्थ्य
अच्छा है। शायद
पैसों के लोभ
में डॉक्टर
ऑपरेशन करने
की सलाह देते
हों तो मानवता
के इस व्यवसाय
में कसाईपना
घुस गया है,
ऐसा कहना पड़ेगा।"
देवेन्द्र
कुमार शर्मा,
घर नं 21,
तुकाराम
बिकाजी कदम
मार्ग, भाटिया
चौक, मुंबई-33
'मेरी
धर्मपत्नी
गर्भवती थी
उसके पेट में
दर्द तथा
मूत्र में रूकावट
की तकलीफ थी।
डॉक्टरों ने
कहाः 'तुरंत
ऑपरेशन करके
मूत्रनली
खोलकर देखनी
पड़ेगी।
ऑपरेशन के
दौरान आगे जैसा
दिखेगा वैसा
निर्णय करके
ऑपरेशन में
आगे बढ़ना
पड़ेगा।'
हमने बात
वैद्यराज से
कही तो
उन्होंने
हमें तुरंत
सूरत आश्रम
बुला लिया।
उन्होंने
मूत्रकृच्छ्र
रोग की
चिकित्सा की
तो दर्द ठीक
हो गया। पेशाब
भी खुलकर आने
लगा। आज भी
मेरी
धर्मपत्नी
ठीक है।
अगर मैं
डॉक्टरों के
कहे अनुसार
पत्नी का ऑपरेशन
करवा देता तो
वर्षों तक
मनौतियाँ
मानने के बाद
जो गर्भ रहा
था, उसको हम खो
बैठते, भ्रूणहत्या
का घोर पाप
सिर पर लेते,
स्वास्थ्य और
धन की कितनी
सारी हानि
होती !
हमारे जैसे
असंख्य
देशवासी, कुछ
नासमझ तो कुछ
कसाई वृत्ति
के लोगों से शोषित
होने से बचें,
यही सभी से
प्रार्थना
है।'
नसवंतभाई
वीरजीभाई
चोधरी
निर्मला
धाम, वास कुई,
मु. मढ़ी. तह.
बारडोली. जि. सूरत(गुज.)
आम जनता को
सलाह है कि आप
किसी भी
प्रकार की शल्यक्रिया
कराने से पहले
आयुर्वेद
विशेषज्ञ की
सलाह अवश्य
लेना। इससे
शायद आप
शल्यक्रिया
की मुसीबत,
एलोपैथी
दवाओं के साईड
इफेक्ट तथा
स्वास्थ्य
एवं आर्थिक
बरबादी से बच
जायेंगे।
कई बार
शल्यक्रिया
करवाने के
बावजूद भी रोग
पूर्ण रूप से
ठीक नहीं होता
और फिर से वही
तकलीफ शुरुर
हो जाती है।
मरीज
शारीरिक-मानसिक-आर्थिक
यातनाएँ
भुगतता रहता
है। वे ही रोग
कई बार
आयुर्वेदिक
चिकित्सा से
कम खर्च में
जड़-मूल से
मिट जाते हैं।
कई बड़े
रोगों में
शल्यक्रिया
के बाद भी
तकलीफ बढ़ती
हुई दिखती है।
शल्यक्रिया
की कोई गारन्टी
नहीं होती।
कभी ऐसा होता
है कि जो रोगी
बिना
शल्यक्रिया
के कम पीड़ा
से जी सके, वही
रोगी
शल्यक्रिया
के बाद ज्यादा
पीड़ा भुगतकर
कम समय में ही
मृत्यु को
प्राप्त हो
जाता है।
आयुर्वेद
में भी
शल्यचिकित्सा
को अंतिम उपचार
बताया गया है।
जब रोगी को
औषधि उपचार
आदि चिकित्सा
के बाद भी लाभ
न हो तभी
शल्यक्रिया
की सलाह दी जाती
है। लेकिन
आजकल तो सीधे
ही
शल्यक्रिया
करने की
मानों, प्रथा
ही चल पड़ी
है। हालाँकि
मात्र दवाएँ
लेने से ही कई
रोग ठीक हो
जाते हैं, शल्यक्रिया
की कोई
आवश्यकता
नहीं होती।
लोग जब
शीघ्र
रोगमुक्त
होना चाहते
हैं तब एलोपैथी
की शरण जाते
हैं। फिर सब
जगह से
हैरान-परेशान
होकर एवं
आर्थिक रूप से
बरबाद होकर
आयुर्वेद की
शरण में आते
हैं एवं यहाँ
भी अपेक्षा
रखते हैं कि
जल्दी अच्छे
हो जायें। यदि
आरंभ से ही वे
आयुर्वेद के
कुशल वैद्य के
पास चिकित्सा
करवायें तो
उपर्युक्त
तकलीफों से बच
सकते हैं। अतः
सभी को
स्वास्थ्य के
सम्बन्ध में
सजग-सतर्क
रहना चाहिए
एवं अपनी
आयुर्वेदिक
चिकित्सा
पद्धति का लाभ
लेना चाहिए।
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