Thursday 28 March 2013

वर्षा ऋतु में अपनाएं स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां




वर्षा ऋतु में अपनाएं स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां

आदान काल में मनुष्य का शरीर दुर्बल रहता है | दुर्बल शरीर में जठराग्नि दुर्बल होती है | वर्षा ऋतु में दूषित वात, पित्त, कफ के कारण जठराग्नि और भी क्षीण हो जाती है | वर्षाकाल में साधारण रूप से सभी नियमों का पालन करना चाहिए |
वर्जित आहार विहार :- इस ऋतु में सत्तू का सेवन, दिन में सोना, ओस में घूमना फिरना, नदी नालों पोखरों तालाबों का जल सेवन, और अधिक स्त्री संसर्ग छोड़ देना चाहिए |
सेवनीय अहार विहार :- वर्षा ऋतु में मधु का सेवन करना चाहिए | विशेष दिनों में अम्लरस तथा लवणरस वाले और चिकनाई युक्त भोजन करने चाहिए | भोजन में गेहूं, चावल अवश्य प्रयोग करने चाहिए | इनको संस्कारित मूंग के रस के साथ लेना चाहिए |  मधु मिलाकर जल का सेवन करें | वर्षा ऋतु में गर्म करके शीतल किया हुआ जल सेवन करना चाहिए  | उबटन, स्नान तथा चंदन आदि गंध युक्त द्रव्यों का प्रयोग करें





वर्षाकाल में निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

  • हर स्थान का पानी न पिएं | घर से पानी पीकर निकलें | यदि पिएं भी तो शुद्ध जल, क्योंकि वर्षाकाल में दूषित जल पीने से रोग हो जाते है |
  • वर्षा ऋतु के प्रभाव से वात का प्रकोप रहता है | अतः वात कुपित करने वाला आहार विहार नहीं करना चाहिए |
  • जहां तक संभव हो शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लें | सूर्य अस्त होने के बाद जठराग्नि मंद हो जाती है जिससे भोजन देर में पचता है |
  • वर्षाकाल के आरंभ में गाय भैंस नई नई पैदा हुई घास खाती है | अतः श्रावण मास में दूध नहीं पीना चाहिए | अंतिम समय में पित्त कुपित लगता है | अतः इन दिनों में भाद्रपद मास में छाज नहीं पीनी चाहिए |
  • वर्षाकाल में जीव जंतु और जहरीले कीड़े भूमि पर विचरते है | अत: वात कुपित करें वाला आहार विहार नहीं करना चाहिए |
  • जब आसमान में बादल छाए हो तब जुलाब न लें | देर रात को भोजन न करें और शाम को गरिष्ठ और देर से हजम होने वाला आहार ग्रहण न करें |
  • यदि बारिश में भीग जाएं तो तुरंत गीले कपड़ें उतार दें और सूखे कपड़ें पहन ले | ज्यादा देर गीले बदन न रहे |
  •  वर्षा ऋतु में नदी तालाब अज्ञात जलाशय और उफनती नदी में स्नान करना और ज्यादा देर तक तैरना उचित नहीं |



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